गीत माला भाग ६

जनहित के लिए समर्पित

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जनहित के लिए समर्पित
जनहित के लिए समर्पित जो, उसको अनुदान मिला करते।
दिन दूने रात चौगुने ही, उसके संकल्प फला करते॥
प्यासी धरती की पीड़ा से, सागर की छाती भर जाती।
धरती की प्यास बुझाने को, उसकी गहराई अकुलाती॥
सागर की बूँदें मचल मचल, जनहित को जाने लगती जब।
तब छोटी छोटी बूँदों में, पावस की क्षमता आ जाती॥
बूँदों के शिव संकल्प धरा पर, अमृत कलश ढला करते॥
पहले साहसकर बीज स्वयं, धरती में जब गड़ जाता है।
जनमंगल का उत्साह लिये, बलिवेदी पर चढ़ जाता है॥
नन्हा सा बीज मिटा देता, जब हँसकर अपनी हस्ती को।
उसको अनुदान मिला करते, उसका वैभव बढ़ जाता है॥
वह एक बीज अगणित होता, कितनों के पेट पला करते॥
तम ग्रसितजनों की मुक्ति हेतु, जब सूरज की किरणें चलतीं।
तब छोटी छोटी किरणें भी, बनकर मशाल जलने लगतीं॥
उनमें क्षमता आ जाती है, तम के घेरों से लड़ने की।
वे छोटी छोटी किरणें ही, तम के हर घेरे को खलतीं॥
जन पथ में फैलाती प्रकाश, मुरझाये फूल खिला करते॥
जब क्षीण काम धाराएँ, भी जन पथ को लक्ष्य बनाती है।
पर्वत की छाती चीर, प्रवाहित होने चरण बढ़ाती हैं॥
अंजुली भर जल लेकर चलती, जब वे शिव को अर्पित करने।
उस धारा में चलते चलते, अनगिन धारा मिल जाती हैं॥
गंगा की गरिमा गति पाती, पथ के व्यवधान टला करते॥
जनमंगल में जो जुटा हुआ, क्या कमी उसे अनुदानों की।
उसमें क्षमता आ जाती है, अनुदानों की वरदानों की॥
उसके संकल्प चला करते, रौंदते हुए बाधाओं को।
गति मोड़ दिया करता है वह, उठने वाले तूफानों की॥
जिस ओर चला करता है वह, साहस अरुशौर्य चला करते॥
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