गीत माला भाग ६

जिनके तप ने दिया मिशन

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जिनके तप ने दिया मिशन
जिनके तप ने दिया मिशन को, हृष्ट- पुष्ट जीवन।
उन अनजान जड़ों को अपना, सौ- सौ बार नमन।।
-सबका वन्दन- अभिनन्दन।।
गुरुवर ने जब स्वयं बीज सा, निज सर्वस्व गलाया।
तब हर घटक प्रकृति का आया, निज सहयोग बढ़ाया।।
कोई अंकुर बना, बन गया, डाल सुकोमल कोई।
शाखाओं पर उभरा बनकर, फूल और फल कोई।।
किन्तु जड़ों को देख न पाए, कोई कुशल नयन।।
इसकी फुनगी, फूल- फलों को, सबने बहुत सराहा।
इसकी छाया के सुख को भी, सबने पाना चाहा।।
गंध, मधुरता, शोभा सबने, मान- प्रशंसा पाई।
किन्तु जड़ों की मौन तपस्या देती नहीं दिखाई।।
कभी किसी ने सुना न उनका, कलरव या क्रन्दन।।
आज विश्व तक फैल गई है, इस वट की शाखाएँ।
शांति यहाँ से लेकर उड़ती, हैं हर ओर हवाएँ।।
यहाँ ठहरकर मानव मन को, शीतलता मिल जाती।
हारे मन की थकन निराशा, यहाँ स्वतः मिट जाती।।
इस विशाल वैभव की जो हैं, मौन भूल कारण।।
रहे मिशन में भूल सरीखे, जो परिजन अनजाने।
करी समर्पण सेवा रहकर, सदा बिना पहचाने।।
गुरु की कृपा जन्म- जन्मों तक, वे परिजन पाएँगे।
हर परिजन को देव सहायक, निश्चय हो जाएँगे।।
उनका ऋणी रहेगा सारा, युगनिर्माण मिशन।।
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