जियेंगे न अब हम
जियेंगे न अब हम अपने लिए ही,
शपथ है हमें, लोकनायक तुम्हारी।
जुटेंगे सतत लोक- कल्याण में हम,
शपथ है हमें, लोक साधक तुम्हारी॥
चलेंगी न साँसें हमारे लिए अब,
तुम्हीं धड़कनों में धड़कते रहोगे।
हमें लोकमंगल डगर पर चलाने,
हमारे डगों में फड़कते रहोगे॥
छिड़ेगीं हमारी हृदय बीन पर अब,
धुनें क्रांति की लोक नायक तुम्हारी।।
बँधेंगे नहीं काल के चक्र में अब,
नहीं मृत्यु की ओर अब हम बढ़ेंगे।
जियेंगे महाकाल के ही लिए अब,
नहीं अब अधम कीटकों सा मरेंगे॥
समयदान क्या? प्राण भी दान देंगे,
शपथ है हमें प्राण- दायक तुम्हारी॥
उपेक्षित न अब देव संस्कृति रहेगी,
इसे विश्व संस्कृति बनाकर रहेंगे॥
लगी है घृणा, द्वेष की आग जग में,
यहाँ स्नेह निर्झर बहाकर रहेंगे॥
पुनः विश्व परिवार देंगे बना हम,
शपथ विश्व में प्रेम पालक तुम्हारी॥
मनुज भूलकर आत्म गरिमा स्वयं ही,
पतन, पाप के गर्त में गिर रहा है।
भटक अब रही है तिमिर में मनुजता,
अँधेरा चतुर्दिक यहाँ घिर रहा है॥
सहेगा नहीं विश्व अब वेदना को,
पियेंगे शपथ शिव सहायक तुम्हारी॥