जो बनाता अखिल विश्व का
(महाकाल वन्दना)
जो बनाता अखिल विश्व का संतुलन।
उस महाकाल को हम सभी का नमन॥
सज्जनों के लिए जो सबल ढाल है।
दुर्जनों के लिए वज्र विकराल है॥
जन्म और मृत्यु जिस शक्ति की हैं शरण।
दूर दिन- रात से है समय से परे।
जोकि है सृष्टि- पालन प्रलय से परे॥
अप्रभावी जिसे हैं शयन जागरण॥
पास जिसके अशिव रह न पाता यहाँ।
है प्रखर प्राण का जो प्रदाता यहाँ॥
रह न सकता शिथिल मानवी आचरण॥
हम महाकाल के श्रेष्ठ सहचर बनें।
उस महासिन्धु के दूत, जलधर बनें॥
ताकि हो विश्व में सतयुगी नव सृजन॥
जो करेंगे सृजन, श्रेय पा जाएँगे।
मानवी जन्म का, ध्येय पा जाएँगे॥
हो सकेगा सहज स्वर्ग का अवतरण॥