मुक्तक-
तुम हो गुरुवर के युग सैनिक, जीवन अर्पण से क्यों डरते हो।
जब साथ- साथ हैं महाकाल, तूफानों से क्यों डरते हो।।
जो गया भक्त बन
जो गया भक्त बन सद्गुरु की शरण,
हो गया भक्ति में शक्ति का संचरण॥
श्रेष्ठता का हमें शौर्य- साहस मिला,
शुष्क मरुभूमि में स्नेह का रस मिला।
मेघ संशय अनास्था भरे छँट गए,
जन्म- जन्मान्तरों के कलुष कट गए॥
कर लिया उसने है श्रेष्ठता का वरण,
हो गया भक्ति में शक्ति का संचरण॥
भक्त ने जबकि अंतस् समर्पित किया,
तब अनायास ज्योतित हुआ मन- दिया।
लीन जब हो गया ज्योति के ध्यान में,
था नहीं भेद गुरु और भगवान में॥
उसके भीतर हुआ ज्योति का अवरण,
हो गया भक्ति में शक्ति का संचरण॥
गुरु स्वयं जड़, परम चेतना है वही,
प्राण है प्राण की प्रेरणा है वही।
वह सगुण है, सनातन, निराकार भी,
ठोस आधार भी है, निराधार भी॥
गुरुकृपा का कभी भी न होता क्षरण,
हो गया भक्ति में शक्ति का संचरण॥
मुक्तक- अगुण, सगुण सब रूप हैं, निराकार साकार।
जो गुरु चरणों में गिरे, हो भवसागर पार॥