नहालो चाहे सारे तीर्थ
नहालो चाहे सारे तीर्थ, घूम लो चाहे चारों धाम।
तुम्हारे कर्मों के अनुसार, मिलेगा निश्चय ही परिणाम॥
न करते देवालय के द्वार, किसी का पापों से उद्धार।
किसी के दुष्कर्मों का दण्ड, न धोयेगी गंगा की धार॥
क्या हुआ जपा अगर हरिनाम, रात दिन तुमने आठों याम॥
मिला है जीवन हमें महान, व्यवस्थित करें विश्व उद्यान।
इसी में है सबका कल्याण, इसी में अपना भी कल्याण॥
कि ऐसा जीवन है बेकार, न आया अगर किसी के काम॥
दिशाओं में गूँजी आवाज, कि है संक्रान्ति काल यह आज।
झुकाए बैठे हैं सब शीश, मनुजता की लुटती है लाज॥
करो हर दुष्प्रवृत्ति का नाश, बनो तुम आज चक्रधर श्याम॥
हो रहा नारी का अपमान, न विद्या, आयु, बुद्धि का ध्यान।
यत्न यूँ करो कि जिससे आज,कलुष का रहे ना नाम निशान॥
पलायन से न चलेगा काम, जिन्दगी है अविरल संग्राम॥
लोकहित में कर लो कुछ काम, यही है तीर्थ यही हर धाम।
तभी तो धरा बनेगी स्वर्ग, देव मंदिर होगा हर ग्राम॥
न करना है बिल्कुल विश्राम, निरन्तर चलना है अविराम॥
सुनिश्चित है पूरब की ओर, उगेगी उजली- उजली भोर।
न होगा कपट और पाखण्ड, देव संस्कृति का होगा जोर॥
हृदय में होगी नयी उमंग, समय होगा पावन अविराम॥