नव प्रभात है नव प्रकाश है
नव प्रभात है नव प्रकाश है, जागृत प्राण करो।
सविता की प्रकाश सविता में, शुचि स्नान करो॥
जन- मानस से आलोकित करने, फूट पड़े प्रकाश के झरने।
बरस रहा अमृत अम्बर से, अमृत पान करो॥
है प्रकाश पर्व अनूठा, रहे न इससे कोई अछूता।
द्वार- द्वार किरणें पहुँचाओ, दीपक दान करो॥
तम के घर भी हो दीपावली, मावस से भी हो अब उजियारी।
तम के प्राण घुट रहे तम में, तम से त्राण करो॥
है प्रकाश युग की अगवानी, सत्य हो रही भविष्य वाणी।
नव प्रकाश युग के सृष्टा को, श्रद्धा सहित प्रणाम करो॥
यदि गायन सुन्दर हो तो, श्रेय उन्हीं को मिलना चाहिए, जिन्होंने इनका भाषानुवाद प्रारम्भ में किया और दुबारा करने का आदेश
मुझे दिया। - प. वन्दनीया माताजी