गीत माला भाग ९

निराशा हो कभी मन में

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मुक्तक-
आप हैं भगवान गुरुवर, आप ही करतार हैं। हैं खेवैया नाव के प्रभु, जग के तारण हार हैं॥

निराशा हो कभी मन में
निराशा हो कभी मन में, न फिर भी धैर्य को खोना।
समझकर जिन्दगी को व्यर्थ, सी मत भार- सा ढोना॥
जगत की रीति है सब, शक्ति का ही साथ देते हैं।
बहुत कम हैं कि जो गिरते, हुओं को थाम लेते हैं॥
अतः मत इस जगत की कटु, उपेक्षा के लिए रोना॥
हमारी राह में अक्सर, भयानक मोड़ आते हैं।
हमें दिशाहीन करके जो, अकेला छोड़ देते हैं॥
समझो इनको अटल अनिवार्य, बन्धु हताश मत होना॥
बहुत ही कीमती है जिन्दगी, का एक छोटा पल।
निरर्थक आज है यदि तो, वही सार्थक बनेगा कल॥
प्रतीक्षा में बहक जाये न, मन का बाल मृग छौना॥
परिस्थिति आज है जो शक्ति, साहस से उसे बदलो।
जहाँ अधिकार हो अपना, उसे लेने उठो मचलो॥
नये उल्लास से नैराश्य के, हर रंग को धोना॥

न जीवन व्यर्थ है यदि हम, जियें इसको जगत के हित। न पानी व्यर्थ है करता रहे, यदि बाग को सिंचित॥
विशद कर लो हृदय का स्वार्थ, से संर्कीण सा कोना॥

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