निर्धन या धनवानों की
निर्धन या धनवानों की, सच्चे श्रद्धावानों की।
हुई जरूरत महाकाल को, फिर से प्रतिभावानों की॥
चाहे बूढ़ा हो जवान हो, हृदय भरा सद्भावों से।
अनपढ़ हो ज्ञानवान, लेकिन हो दूर दिखाओं से॥
क्या कर्तव्य हमारा है, जिनने इसे विचारा है।
सबके जो आदर्श बन सके, उन उत्तम प्रतिभाओं की॥
चारों तरफ है फैली, धधक रही है ज्वालाएँ।
नहीं समझदारी जो अब भी, करें स्वयं की चिन्ताएँ॥
यह न समय अलसाने का, अवसर है जग जाने का।
निभा सके जो गौरवशाली, परम्परा बलिदानों की॥
कला, कथा, कविता को नारी, का सम्मान बढ़ाना है।
फिल्मों को अपराधवृत्ति को, नहीं और उकसाना है॥
समझें माँग जमाने की, कुछ करके दिखलाने की।
है भवनों से अधिक जिन्हें, चिन्ता चरित्र निर्माणों की॥
जो वैभव से नहीं बड़प्पन, अपना दिखलाना चाहें।
हर सुविधा साधन पद अपने, लिये न जो पाना चाहें॥
कर्मों में मर्यादा हो, जीवन सीधा साधा हो।
जिन पर ऊँगली उठे न कोई, उन बेदाग प्रमाणों की॥
अपना सारा समय बितायें, जो न यहाँ पाखण्डों में।
जिन्हें न सुख मिलता मजहब के, मनमौंजी हथकण्डों में॥
उन जागृति जीवन्तों की, लोक सेवकों सन्तों की।
सबकी पीर समझलें ऐसे, परहित रत इन्सानों की॥