मुक्तक-
नींव ही तो भवन का आधार होती है।
भूमि पूजन के समय मनुहार होती है॥
नीव का पत्थर बने जो धन्य होता वह।
शिलान्यासों में उसी की याद होती है॥
संगीत सुर का सागर है। संगीत जीवन का रस है। -परम पूज्य गुरुदेव
नित सत्संग करो मेरे भैया
नित सत्संग करो मेरे भैया, जो चाहो कल्याण है।
बदले दृष्टि कोण इसी से, जीवन बने महान है॥
रत्नाकर से निर्दय डाकू, लूटमार जो खाते हैं।
पाकर के सत्संग वे ही, ऋषि बाल्मीकि बन जाते हैं॥
खड़क छोड़कर कलम उठाते, लिख जाते रामायण है॥
तुलसी जैसे कामुकता में, जीवन रत्न लुटाते हैं।
पाय नारी सत्संग बदल गये, रामचरित सोई गाते हैं॥
तुलसीकृत रामायण जिनकी, जगत प्रसिद्ध प्रमाण है॥
अंगुलिमाल महा हत्यारे, सत संगत जब पाये हैं।
धर्म प्रचारक बने वे ही, फिर देश- विदेश न धाये हैं॥
बुद्धम् शरणम् गच्छामि, का गूँजा जग में गान है॥
सत्संग बिन चंचल मनुआ, पर कुसंग में जावेगा।
हिरणाकुश, रावण दुर्योधन, सा उत्पात मचायेगा।
दुःख दे और स्वयं दुःख पावे, ये कुसंग शैतान है॥
बहुत हुई बदनाम मनुजता, अब मत देर लगाओ रे।
ग्राम- ग्राम और नगर- नगर, मण्डल सत्संग बनाओ रे॥
मनुज देवता बने- बने ये, धरती स्वर्ग समान है॥