नीव के पत्थरों
नींव के पत्थरों, यह मिशन का भवन,
युग युगों तक तुम्हारा रहेगा ऋणी॥
मानते हैं कि तुम भूमि के गर्भ में,
कर सकोगे न अनुभव पवन की छुअन,
मंदिरों की मधुर घंटियों की गमक,
भोर की गोद में मुस्कुराती किरन,
दिख सकेगी न तुमको बसन्ती छटा,
छू न पायेगी तुमको घटा सावनी॥
सत्य है सामने भव्यता के कभी,
तुम नहीं आ सकोगे किसी ध्यान में,
कोई उत्सव समारोह अथवा सभा,
भी न होगी तुम्हारे सुसम्मान में,
गीत स्तुति प्रशंसा तुम्हारे लिए,
लिख सकेगी नहीं कोई लेखनी॥
यह भवन अब भले ही गगन चूम ले,
किन्तु उसको जनाधार तुमसे मिला,
खुद अपरिचित रहे पर मिशन की प्रखर,
कीर्ति को विश्व विस्तार तुमसे मिला,
छा गई छाँह बनकर मिशन के लिए,
साथियों भाव श्रद्धा तुम्हारी धनी॥
नींव के पत्थरों पात्रता का नहीं,
मिल सकेगा तुम्हारा न सानी कभी,
एक पल भी नहीं भूल पायेंगे हम,
त्याग तप की तुम्हारी कहानी कभी,
स्वार्थ को त्यागकर बीज से तुम गले,
दीप से तुम जले भावना के धनी॥
कोई देखे न देखे तुम्हारे लिए,
पूज्य गुरुदेव की दृष्टि में प्यार है,
अब तुम्हारे लिए दिव्य अनुदान से,
छल छलाती हुई गुरु कृपाधार है,
धन्य हो तुम अमर यश तुम्हारा सदा,
और गरिमा तुम्हारी गगन गामिनी॥