प्रज्ञा पुराण पावन
प्रज्ञा पुराण पावन, युगऋषि की है ये वाणी।
दुनियाँ पड़ी भँवर में, मुक्ति दिलाने वाली।।
है ज्योति ये निराली, सद्बुद्धि देने वाली।
सद्गुण बढ़ाने वाली, दुर्गुण मिटाने वाली।
युग ज्ञान की चमक यह, युग धर्म की है दानी॥
ऋषियों का दिव्य चिंतन, सुनकर प्रसन्न हो मन।
मिट जाय मन का क्रन्दन, जीवन बनेगा उपवन।
हर भ्रान्ति दूर होगी, ऐसी है ये कहानी॥
दुःख दूर हो हमारे, भरपूर सुख हों सारे।
कल्मष कषाय भागे, देवत्व सबका जागे।
पावन पुराण सुनकर, शुभ ज्योति है जलानी॥
इहलोक भी सँवारे, परलोक भी विचारे।
परिवार में सभी जन, सबके बने सहारे।
है ज्ञान यह अनूठा, सत्कीर्ति है सुहानी॥
प्राकृतिक रचना क्रम का प्रतिफल ही संगीत है।
- मनीषी हर्मीस