गीत संजीवनी- 3

अद्वितीय है निर्माणों में

<<   |   <   | |   >   |   >>
अद्वितीय है निर्माणों में

अद्वितीय है निर्माणों में, गुरुओं का निर्माण।
जिनने फूँके चलती फिरती, प्रतिमाओं में प्राण॥

विश्वामित्र और संदीपन, राम, कृष्ण निर्माता।
अंगुलिमाल, अम्बपाली का, जुड़ा बुद्ध से नाता॥

थे चाणक्य कि चन्द्रगुप्त के, अनुपम भाग्य विधाता।
और शिवाजी थे समर्थ के, सपनों के उद्गाता॥
गुरु के अनुदानों की महिमा, अनुपम और महान्॥

दयानन्द बन सके मूलशंकर, गुरु की गरिमा से।
बने विवेकानन्द नरेन्द्र भी, गुरुता की महिमा से॥

एकलव्य तो धन्य हुआ, केवल गुरु की प्रतिमा से।
बना जगत्गुरु देश हमारा, गुरुता की गरिमा से॥
पावनतम गुरु परम्परा के, अनगिन हैं अनुदान॥

किन्तु पात्रता प्रामाणिकता, और समर्पण भाव।
कर पाता है गुरु गरिमा का, ग्रहण अचूक प्रभाव॥

मृदु माटी का सहज समर्पण, वाला सरल स्वभाव।
कुम्भकार से रहने देता, नहीं दुराव छुपाव॥
तभी शिल्प को मिल पाते हैं, शिल्पी के वरदान॥

हमें मिला है इस युग में भी, ऐसा ही संयोग।
नहीं हाथ से जाने दें यह, अवसर और सुयोग॥

कर अपना शिष्यत्व प्रमाणित, करें अचूक प्रयोग।
ताकि कट सकें गुरु अनुकम्पा, से सारे भव रोग॥
करें समर्पण द्वारा आओ, नवयुग का उत्थान॥

मुक्तक-


जगत्गुरु था अगर भारत, तो था गुरु की कृपाओं से।
धरा, नभ गूँजते थे, उन्हीं की गुरुत्तर ऋचाओं से॥

उन्होंने शिष्य को पारस, परस से कर दिया कंचन।
समर्पण कर गुरू को, मुक्त हों, कल्मष कषायों से॥
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118