गीत संजीवनी- 3

अब नवयुग की गंगोत्री

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अब नवयुग की गंगोत्री

अब नवयुग की गंगोत्री से, बही ज्ञान की धारा है।
हम युग का निर्माण करेंगे, यह संकल्प हमारा है॥

गुरुसत्ता ने थकी मनुजता, को नूतन विश्वास दिया।
पतितों के उद्धार के लिए, उनने सदा प्रयास किया।
उनकी ही कारण सत्ता का, हमको सतत् सहारा है॥

हैं दीपक की तरह जलें हम, करने युग निर्माण चले।
जलती हुई मशाल हाथ में, लेकर अमर निशान चले।
आज असुरता के विनाश को, चमका यही दुधारा है॥

धरती के कोने- कोने में, गली- गली मे जायेंगे।
तपी हवाओं से मुरझाई, कली- कली विकसायेंगे।
गुरु का चिंतन दुःखी मनुजता, की शीतल रसधारा है॥

नया ज्ञान का सूर्य उगेगा, तिमिर नहीं रह पायेगा।
मानव में देवत्व जगेगा, स्वर्ग धरा पर आयेगा।
अंधकार कितना ही हो पर, सूरज कभी न हारा है॥


मुक्तक-

ब्रह्मकमण्डल से धरती पर, उतर सुरसरी आई।
नवयुग के शंकर ने जिसके,लिए जटा फैलाई॥

हम उसका अमृत जल लेकर,जन- जन तक जायेंगे।
शाप मुक्त करने की अब तो,हमने शपथ उठाई॥
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