टिप्पणी- कवि मानव गरिमा की याद दिलाते हुए कहता है कि यदि हम
मनुष्य होकर भी देश के काम न आ सकें तो धरती आसमान हमें धिक्कारेंगे। क्योंकि हममें और पशु में क्या अंतर रह जायेगा?
स्थाई- अगर हम नहिं देश के काम आये।
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा?
व्याख्या- इसलिए आलस्य को छोड़कर श्रम के कटिबद्ध हो जायें और
देश निर्माण में जुट जायें। अगर ऐसे समय भी हम नहीं जाग सके
तो फिर हमें प्रभात एवं पवन दोनों के सामने शर्मिदा होना पड़ेगा।
अ.1- चलो श्रम करें देश अपना संवारे।
युगों से चढ़ी जो खुमारी उतारें॥
अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाये।
सुबह क्या कहेगी पवन क्या कहेगा?
व्याख्या- हमें फूलों जैसा महक कर चारों ओर सुगन्ध फैलानी चाहिए। संकटों के शूलों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। यदि हम फुल सा मुस्कुराना महकना नहीं सीख पाते तो फिर कली और चंदन हमारी उपेक्षा ही करेंगे।
अ.2- मधुर गंध का अर्थ है खूब महके।
पड़े संकटों की भले मार चहके॥
अगर हम नहीं पुष्प का मुस्कराये।
व्यथा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा?
व्याख्या- हमारा देश नारकीय जीवन बहुत बीता चुका है। अब तो हमें धरा पर स्वर्ग सृजन का पुरूषार्थ
करना ही होगा। अगर हम जन पथ पर प्रकाश न फैला सकें तो फिर
शमा को और वतन को क्या जवाब देंगे। इसलिए हर कीमत पर हमें
राष्ट्र उत्थान के कार्य में जुट जाना चाहिए।
अ.3- बहुत हो चुका, स्वर्ग भू- पर उतारें।
करें कुछ नया, स्वस्थ सोचें विचारें॥
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाये।
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा॥