गीत संजीवनी-6

ऐसी कृपा करो जग जननी

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ऐसी कृपा करो जग जननी
ऐसी कृपा करो जग जननी, जीवन गायत्री मय हो।
सद्चिन्तन सद्भाव जगे, सत्कर्मों की जग में जय हो॥
कण- कण में अणु- अणु में माता, रूप तुम्हारा पाए हम।
अपना ही परिवार मिले माँ, जहाँ कहीं भी जायें हम।
धूप खिले नयनों में उजली, मन में नव सूर्योदय हो॥
जीवन लक्ष्य सुझाया तुमने, कभी न उसको भूलें हम।
धन- साधन सम्मान मिले तो, जरा न मद में फूलें हम।
कहीं न हो पग डगमग-डगमग,पल भर भी न कभी भय हो॥
कितने ही दानी बन जायें, अथवा हों बलिदानी हम।
किन्तु किसी पल भी तो मन में, हो न सकें अभिमानी हम।
हर चिंतन हर कर्म हमारा, माता तुममें ही लय हो॥
ऐसा अंतकरणः हो माता, जैसा मान सरोवर हो।
वाणी हो वेदों सी पावन, कर्म सुमन से सुन्दर हो।
कृपा तुम्हारी पाकर माता, मन पावन देवालय हो॥
मुक्तक-
मन में वास तुम्हारा है माँ, पावन उसे बनाना है।
सुविचारों सद्भावों से माँ, उसको खूब सजाना है॥
कर्म प्रचण्ड करें हम हर क्षण, नहीं अहं का लेश रहे।
अन्दर आभा रहे तुम्हारी, चाहे जैसा वेश रहे॥
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