इतने अमूल्य मानव
इतने अमूल्य मानव जीवन को, नाच नचायेगा क्या क्या॥
कुल चार दिनों का जीवन था, दो काट चुके दो कटने हैं।
दो दिन के बाकी जीवन में, संसार दिखायेगा क्या क्या॥
खुद जान बुझकर ही जिसने, काटों में पैर बढ़ाया हो।
उसको काटों से बचने की, तरकीब बतायेगा क्या क्या॥
अनुमान लगाने बैठूँ तो, सचमुच सिर चकरा जायेगा।
मैंने थोड़े से जीवन में, खोया क्या क्या पाया क्या क्या॥
सब भले बुरे की परिभाषा, ही बदल जाएगी क्षण भर में।
यदि तुम्हें बताने बैठूँ मैं, देख है भला बुरा क्या क्या॥
हर चीज मुझे जब हासिल थी, मिलता था मगर एक तू ही नहीं।
क्या तुझको बताए तेरे बिना, इस दिल का तमाशा था क्या क्या॥
मैं तो पहचान नहीं पाया, तू ही जाने तेरी माया।
जीवन के इन व्यापारों में, मेरा क्या क्या तेरा क्या क्या॥