कण- कण में छा रही
कण- कण में छा रही है, महिमा ओ माँ तुम्हारी।
कर ध्यान मातु सुन ले, यह वन्दना हमारी॥
दीप चन्दन थाली से सदा आरती उतारूँगा।
सुमन श्रद्धा नहलाकर, तुम्हें निशदिन चढ़ाऊँगा॥
एक बार आओ मैया, कर हंस की सवारी॥
जिसे अपना बनाया माँ, उसी ने हमको ठुकराया।
बहे कितने मेरे आँसू, तरस तुझको नहीं आया॥
मेरे लिए तू मैया, काहे को करे तू देरी॥
भूल हो जाय अगर कोई,क्षमा माँ हमको तुम करना।
लेकर त्रिशूल जगदम्बे, दर्द दुखियों के तुम हरना॥
नयनों में छा रही है, माँ की छबि निराली॥