प्रकृति की व्यवस्थाएँ इतनी सर्वांगपूर्ण हैं कि उसे ही परमात्मा के रूप में मान लिया जाय तो कुछ अनुचित नहीं होगा ।। शिशु जन्म से पूर्व ही माँ के स्तनों में ठीक उस नन्हे बालक की प्रकृति के अनुरूप दूध की व्यवस्था, हर प्राणी के अनुरूप खाद्य व्यवस्था बनाकर जगत में सुव्यवस्था और सन्तुलन बनाये रखने वाली उसकी कठोर नियम व्यवस्था भी सुविदित है ।। इस व्यवस्था को जो कोई तोड़ता है, उसे दण्ड का भागी बनना पड़ता है ।।
इन दिनों मनुष्य ने अपनी बुद्धि का उपयोग कर अनेकानेक साधन सुविधाएँ विकसित और अर्जित कर ली है ।। वह निरन्तर प्रगति करता जा रहा है उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित किया है ।। मानवी रुचि में अधिकाधिक उपयोग की ललक उत्पन्न की जा रही है ताकि अनावश्यक किन्तु आकर्षक वस्तुओं की खपत बढ़े और उससे निहित स्वार्थों को अधिकाधिक लाभ कमाने का अवसर मिलता चला जाय ।। इसी एकांगी घुड़दौड़ ने यह भुला दिया है कि इस तथाकथित प्रगति और तथाकथित सभ्यता का सृष्टि संतुलन पर क्या असर पड़ेगा ।। इकॉलॉजीकल बैलेन्स गँवा कर मनुष्य सुविधा और लोभ प्राप्त करने के स्थान पर ऐसी सर्प विभीषिका को गले में लपेट लेगा जो उसके लिए विनाश का संदेश ही सिद्ध होगी ।।
एकांगी भौतिकवादी अनियंत्रित उच्छृंखल दानव की तरह अपने पालने वाले का ही भक्षण करेगा ।। यदि विज्ञान रूपी दैत्य से कुछ उपयोग लाभ उठाना हो तो उस पर आत्मवाद का, मानवीय सदाचार का नियंत्रण अनिवार्य रूप से करना ही पड़ेगा ।।
मनुष्य प्रगति की दिशा में आगे बढ़े यह उचित है ।। विज्ञान की प्रगति इस युग की एक बड़ी उपलब्धि है ।। उसने मनुष्य जाति को एक नया उत्साह दिया है कि उज्ज्वल भविष्य के लिए अधिकाधिक सुख सम्वर्धन के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है, सो किया जा भी रहा है ।। इन्हीं शताब्दियों में वैज्ञानिक खोजो ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है और कितने ही क्षेत्रों में आशा भरा उत्साह उत्पन्न किया है ।। इन उपलब्धियों के महत्त्व को झुठलाया नहीं जा सकता ।।
वैज्ञानिक प्रगति के साथ- साथ मानवीय सुख- सुविधाओं में जो वृद्धि हुई है उसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता ।। यातायात, कल- कारखाने, कृषि व शिल्प, विनोद, चिकित्सा, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में सौ- दो सौ वर्ष पूर्व के लोगों की तुलना में अब कहीं अधिक साधन सम्पन्नता है ।। बिजली, तार, रेडियो, टेलीफोन, प्रेस, अख़बार आदि के सहारे जो सुविधायें मिली हैं वे अभ्यास में आने के कारण कुछ आश्चर्य- जनक भले ही प्रतीत न हों, पर आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व का कोई मनुष्य आकर यह सब देखे और अपने जमाने की परिस्थितियों के साथ तुलना करे तो उसे प्रतीत होगा कि वह किसी अनजाने दैत्य लोकों में विचरण कर रहा है ।।
द्रुतगामी वाहनों की अपनी शान है ।। रेल, मोटर, वायुयान, पनडुब्बी, जलपोतों के कारण मिलने वाली सुविधायें कम नहीं आंकी जानी चाहिए ।। चिकित्सा एवं शल्य क्रिया, की उपलब्धियाँ कम नहीं हैं ।। सिनेमा और टेलीविजन, रेडियो के माध्यम से गरीब लोगों के लिए भी मनोरंजन की सुविधा सम्भव हो गयी है ।। अन्तरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में हुई प्रगति ने मनुष्य के चरण, तीन चरणों में तीन लोक नाप लेने वाले वामन भगवान जितने लम्बे बना दिये हैं ।। शस्त्रास्त्रों की दुनिया में अब मारण का व्यवसाय इतना सरल बन गया है कि एक बच्चा भी पृथ्वी पर निवास करने वाले समस्त प्राणधारियों का अस्तित्व क्षण भर में समाप्त कर सकता है ।।
पशु- पक्षियों और वृक्ष- वनस्पतियों की वर्णसंकर जातियाँ उत्पन्न करने की कृत्रिम गर्भाधान, टेस्टट्यूबों की सफलता प्राप्त करके मनुष्य सृष्टि के निर्माता विधाता के पद पर आसीन होने की तैयारी कर रहा है ।। विशालकाय स्वसंचालित यन्त्रों से पौराणिक दैत्यों का काम लिया जा रहा है ।। वरुण से जल भराने, वायु से पंखा झलवाने, अग्नि से ऋतु का प्रभाव सन्तुलित कराने का काम रावण लेता था, आज जल- कल, बिजली की बत्ती, फोन, रेफ्रिजरेटर, हीटर, कूलर आदि के माध्यम से वे रावण जैसी उपलब्धियाँ हर किसी के लिए संभव हो गयी है ।। पुष्पक विमान पर अब हर कोई उड़ सकता है और समुद्र लाँघने की हनुमान जैसी शक्ति किसी भी वायुयान और जलयान यात्रा से सहज ही उपलब्ध है ।।
सोमयोलोजी नामक मस्तिष्क विद्या के एक शाखा के अन्तर्गत ऐसे अनुसंधान हो रहे हैं कि मनुष्यों की चिन्तन पद्धति कुछ समय के लिए आवेश रूप में नहीं वरन् स्थायी रूप में बदली जा सकेगी ।। जिस प्रकार प्लास्टिक सर्जरी से अंगों की काट- छाँट करके कुरूपता को सुन्दरता में बदल दिया जाता है, उसी प्रकार मस्तिष्क की विचारणा एवं संवेदना का आधार भी बदल दिया जाय जिससे वह सदा के लिए अपने मस्तिष्क चिकित्सक का आज्ञानुवर्तीत बनने के लिए प्रसन्नतापूर्वक सहमत हो जाये ।।
समुद्र के खारे पानी को मीठे जल में बदलने की कृत्रिम वर्षा कराने की, रेगिस्तानों को उपजाऊ बनाने की, अणु शक्ति से ईंधन का प्रयोजन पूरा करने की, समुद्र सम्पदा के दोहन की, जराजीर्ण अवयवों का नवीनीकरण करने की, योजनायें ऐसी ही है जिनसे आँखों में आशा की नई ज्योति चमकती है ।।
इन उपलब्धियों से मदोन्मत्त होकर मनुष्य अपने को प्रकृति का अधिपति मानने का अहंकार करने लगा है और अपने को सर्व शक्तिमान बनाने की धुन में मारक अणु आयुद्ध बनाने से लेकर जीवन- यापन की प्रक्रिया में उच्छृंखला स्वेच्छाचार बरतने के लिए आतुरतापूर्वक अग्रसर हो रहा है ।। सफलताओं के जोश में उसने होश गँवाना आरम्भ कर दिया है ।। इसका दुष्परिणाम उसके सामने आ रहा है ।।
कारखाने और द्रुतगामी वाहन निरन्तर विषैला धुआँ उगलकर, वायुमण्डल को जहर से भर रहे हैं ।। उनमें जलने वाले खनिज ईंधन का इतनी तेजी से दोहन हुआ है कि समूचा खनिज भण्डार एक शताब्दी तक भी और काम देता नहीं दिख पड़ता ।। धातुओं और रसायनों के उत्खनन से भी पृथ्वी उन सम्पदाओं से रिक्त हो रही है ।। उन्हें गँवाने के साथ- साथ धरातल की महत्वपूर्ण क्षमता घट रही है और उसका प्रभाव धरती के उत्पादन से गुजारा करने वाले प्राणियों पर पड़ रहा है ।।
जलाशयों में बढ़ते शहरों का कारखानों का कचरा, उसे अपेय बना रहा है ।। साँस लेते एवं पानी पीते समय यह आशंका सामने खड़ी रहती है कि उसके साथ कहीं मंद विषों की भरमार शरीरों में न हो रही हो ।। उद्योगों- वाहनों द्वारा छोड़ा गया प्रदूषण, ग्रीन हाउस इफेक्ट के कारण अन्तरिक्ष में अतिरिक्त तापमान बढ़ रहा है, जिससे हिम- प्रदेशों के बर्फ पिघल जाने और समुद्रों में बाढ़ आ जाने का खतरा निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है ।। ब्रह्माण्डीय किरणों की बौछार से पृथ्वी की रक्षा करने वाला ओजोन कवच, विषाक्तता का दबाव न सह सकने के कारण फटता जा रहा है ।। क्रम वही जारी रहा तो जिन सूर्य किरणों से पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ है वे ही छलनी के अभाव में अत्यधिक मात्रा में आ धमकने के कारण विनाश भी उत्पन्न कर सकती है ।।
अणु- ऊर्जा विकसित करने का जो नया उपक्रम चल पड़ा है, उसने विकिरण फैलाना तो आरंभ किया ही है यह समस्या भी उत्पन्न कर दी है कि उनके द्वारा उत्पन्न राख को कहाँ पटका जायेगा? जहाँ भी वह रखी जायेगी वहाँ संकट खड़े करेगी ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? पृ. 2.1)