विश्व के राजनेताओं ने भौतिक और वैज्ञानिक प्रगति के साथ- साथ अपने दिमाग भी बहुत बढ़ा दिये हैं ।। इसलिये उनकी कल्पना इस स्तर पर जा पहुँची है, जिनके आगे हिरण्यकश्यपु, भस्मासुर और वृत्तासुर भी पीछे छूट गये हैं ।। विनाश के साधन इतने इकट्ठे किये जा रहे हैं कि शायद धरती पर कोई प्राणी जीवित न रह पाये ।।
विश्व के दो- तिहाई पिछड़ेपन की उपेक्षा कर अमेरिका अपनी सम्पदा कहाँ नियोजित कर रहा है इस संदर्भ में नासा के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हेंस मार्क का कहना है कि अमेरिका अपनी एक महत्त्वाकाँक्षी योजना के अन्तर्गत सन् 2000 तक अपने देश के अधिकांश निवासियों को स्थाई रूप से चन्द्रमा पर बसाने की योजना कार्यान्वित करने से संलग्न है ।। आरम्भ में वहाँ विशेष प्रकार की झोपड़ियाँ बनायी जायेंगी, जिन पर ब्रह्माण्डीय बौछारों से बचने के लिए चन्द्रमा की मिट्टी का लेप चढ़ाया जायेगा ।।
इन झोंपड़ियों में वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण करेंगे तथा चन्द्रमा के धरातल पर पाये जाने वाली खनिज सम्पदाओं का पता लगायेंगे, जिससे उसका दोहन धरतीवासियों के लिये किया जा सके ।। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि वहाँ कुल पदार्थ का 40 प्रतिशत ऑक्सीजन विद्यमान है, जिसे बसे उपनिवेश के लिये खर्चा जा सकता है ।। पानी की समस्या का हल चन्द्रमा पर जमे बर्फ को पिघला कर किया जा सकेगा, साथ ही साथ हाइड्रोजन भी प्राप्त की जा सकेगी, जो कि अंतरिक्ष यान का मुख्य ईंधन है ।। यह तो अमेरिकी योजना है ।। इसी तरह के प्रयोग रूस में भी चल रहे हैं ।।
यह लुभावनी योजना प्रथम दृष्टि से इस सन्दर्भ में लाभकारी लग सकती है कि चन्द्रमा की खनिज- सम्पदा का दोहन किया जा सकेगा और धरती की तरह उसे भी आबाद बनाया जा सकेगा, किन्तु क्या इस ओर भी कभी सोचा गया है कि हर पिण्ड की भार वहन की निश्चित सीमा होती है ।। धरती को भी सम्भवतः भगवान ने इसी दृष्टि से बनाया हो और इसी दृष्टि से चन्द्रमा को जनहितकारी बनाया हो कि उसकी सामर्थ्य इतनी नहीं है कि किसी आबादी के भार को वहन कर सके ।। ऐसी दशा में किसी ऐसी योजना के क्रियान्वयन से यदि चन्द्रमा अपनी कक्षा से हटकर स्वयं ही धराधायी हो और पृथ्वी को भी विस्मार कर दे, तो किसी को भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब पृ. 5.19)