गायत्री मंत्र का तत्वज्ञान

२४ अक्षरों से सम्बन्धित २४ अनुभूतियाँ

<<   |   <   | |   >   |   >>
देव शक्तियों के जागरण एवं अवतरण की अनुभूति प्रायः दो रूपों में होती है ।। प्रथम- रंग, दूसरा- गंध ।। ध्यानावस्था में भीतर एवं बाहर किसी रंग विशेष की झाँकी बार- बार हो अथवा किसी पुष्प विशेष की गंध भीतर से बाहर को उभरती प्रतीत हो, तो समझना चाहिये कि गायत्री के अक्षरों में सन्निहित अमुक शक्ति का उभार विशेष रूप से हो रहा है ।। इस अनुभूति के लिए २४ पुष्पों का उदाहरण दिया गया है ।। उनके रंग या गंध की अन्तः अनुभूति के आधार पर देव शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है ।। ऐसा भी कहा जाता है कि अमुक शब्द शक्तियों की साधना में इन फूलों का उपयोग विशेष सहायक सिद्ध होता है ।।

अक्षरों और पुष्पों की संगति का उल्लेख इस प्रकार है-
अत परम् वर्णवर्णान्व्याहरामि यथातथम् ।।
चम्पका अतसीपुष्पसन्निभं विद्रुमम् तथा ।।
स्फटिकांकारकं चैव पद्मपुष्पसमप्रभम्॥
तरुणादित्यसंकाशं शङ्खकुन्देरन्दुसन्निभम् ।।
प्रवाल पद्मापत्राभम् पद्मरागसमप्रभम्॥
इन्द्रनीलमणिप्रख्यं मौक्तिकम् कुम्कुमप्रभम् ।।
अन्जनाभम् च रक्तं च वैदूर्यं क्षौद्रसन्निभ्ाम्॥
हारिद्रम् कुन्ददुग्धाभम् रविकांतिसमप्रभम् ।।
शुकपुच्छनिभम् तद्वच्छतपत्र निभम् तथा॥
केतकीपुष्पसंकाशं मल्लिकाकुसुमप्रभम् ।।
करवीरश्च इत्येते क्रमेण परिकीर्तिताः॥
वर्णाः प्रोक्ताश्च वर्णानां महापापविधनाः ।।

अर्थात्- गायत्री महामंत्र के २४ अक्षरों की प्रकाश किरणों के २४ रंग नीचे दिये पदार्थों तथा पुष्पों के रंग जैसे समझने चाहिए ।।

(१) चम्पा (२) अलसी (३) स्फटिक (४) कमल (५) सूर्य (६) कुन्द (७) शंख (८) प्रवाल (९) पद्म पत्र (१०) पद्मराग (११) इन्द्रनील (१२) मुक्ता (१३) कुंकुम (१४) अंजन (१५) बैदूर्य (१६) हल्दी (१७) कुन्द (१८) दुग्ध (१९) सूर्यकान्त (२०) शुक की पूँछ (२१) शतपत्र (२२) केतकी (२३) चमेली (मल्लिका) (२४) कनेर (करवीर)

किस अक्षर का नियोजन किस स्थान पर हो इस संदर्भ में भी मतभेद पाये जाते हैं ।। इन बारीकियों में न उलझ कर हमें इतना ही मानने से भी काम चल सकता है कि इन स्थानों में विशेष शक्तियों का निवास है और उन्हें गायत्री साधना के माध्यम से जगाया जा सकता है ।। पौष्टिक आहार- विहार से शरीर के समस्त अवयवों का परिपोषण होता है ।। रोग निवारक औषधि से किसी भी अंग में छिपी बीमारी के निराकरण का लाभ मिलता है, इसी प्रकार समग्र गायत्री उपासना साधारण रीति से करने पर भी विभिन्न अवयवों में विद्यमान देव शक्तियाँ समर्थ बनाई जा सकती हैं ।। सामान्यतया विशिष्ट अंग साधना की अतिरिक्त आवश्यकता नहीं पड़ती ।। संयुक्त साधना से ही संतुलित उत्कर्ष होता रहता है ।।

छन्द शास्र की दृष्टि से चौबीस अक्षरों के तीन विराम वाले पद्य को 'गायत्री' कहते हैं ।। मंत्रार्थ की दृष्टि से उसमें सविता- तत्त्व का ध्यान और प्रज्ञा- प्रेरणा का विधान सन्निहित है ।। साधना- विज्ञान की दृष्टि से गायत्री मंत्र का हर अक्षर बीज मंत्र हैं ।। उन सभी का स्वतंत्र अस्तित्व है ।। उस अस्तित्व के गर्भ में एक विशिष्ट शक्ति- प्रवाह समाया हुआ है ।।

२४ अक्षरों से सम्बन्धित २४ सिद्धियाँ
समग्र गायत्री को सर्वविघ्न विनासिनी, सर्वसिद्धि प्रदायनी कहा गया है ।। संकटों का संवरण और सौभाग्य संवर्धन के लिए उसका आश्रय लेना सदा सुखद परिणाम ही उत्पन्न करता है ।। तो भी विशेष प्रयोजनों के लिए उसके २४ अक्षरों में पृथक्- पृथक् प्रकार की विशेषताएँ भरी हैं ।। किसी विशेष प्रयोजन की सामयिक आवश्यकता पूरी करने के लिए उसकी विशेष शक्ति धारा का भी आश्रय लिया जा सकता है ।। चौबीस अक्षरों की अपनी विशेषताएँ और प्रतिक्रियाएँ हैं- जिन्हें सिद्धियाँ भी कहा जा सकता है, जो इस प्रकार बताई गई हैं-

(१) आरोग्य (२) आयुष्य (३) तुष्टि (४) पुष्टि (५) शान्ति (६) वैभव (७) ऐश्वर्य (८) कीर्ति (९) अनुग्रह (१०) श्रेय (११) सौभाग्य (१२) ओजस् (१३) तेजस् (१४) गृहलक्ष्मी (१५) सुसंतति (१६) विजय (१७) विद्या (१८) बुद्धि (१९) प्रतिभा (२०) ऋद्धि (२१) सिद्धि (२२) संगति (२३) स्वर्ग (२४) मुक्ति ।।

जहाँ उपलब्धियों की चर्चा होती है, वहाँ शक्तियों का भी उल्लेख होता है ।। शक्ति की चर्चा सार्मथ्य का स्वरूप निर्धारण करने के संदर्भ में होती है ।। बिजली एक शक्ति है ।। विज्ञान के विद्यार्थी उसका स्वरूप और प्रभाव अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं ।। इस जानकारी के बिना उसके प्रयोग करते समय जो अनेकानेक समस्याएँ पैदा होती हैं उनका समाधान नहीं हो सकता ।। प्रयोक्ता की जानकारी इस प्रसंग में जितनी अधिक होगी वह उतनी ही सफलतापूर्वक उस शक्ति का सही रीति से प्रयोग करने तथा अभीष्ट लाभ उठाने में सफल हो सकेगा ।। प्रयोग के परिणाम को सिद्धि कहते हैं ।। सिद्धि अर्थात् लाभ ।। शक्ति अर्थात् पूँजी ।। शक्तियाँ- सिद्धियों की आधार हैं ।। शक्ति के बिना सिद्धि नहीं मिलती ।। दोनों को अन्योन्याश्रित कहा जा सकता है ।। इतने पर भी पृथकता तो माननी ही पड़ेगी ।।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118