ब्रह्मयज्ञ ऋषियों की भाँति अपना सब कुछ धन-सम्पति, ऐश्वर्य, शरीर-प्राण, मन-बुद्धि, हृदय आदि सभी परमात्मा को अर्पित कर दें और फिर उनके आदेश के अनुसार ही अपने जीवन में इन सबों का उपयोग करें ।(सब कुछ वस्तुतः परमात्मा को सौंपते ही उनका र्निदेश अन्तर में क्रमशः स्पष्ट होकर प्राप्त होने लगता है ।) यह ब्रह्मयज्ञ है।
यज्ञो के विविध प्रकार-देवयज्ञ
विश्व के कल्याण के लिए प्रत्यक्ष अग्रि में ऐसे आरोग्यमय, पुष्ट और मंगल द्रव्यों की श्रद्धा और भक्ति से आहुति दें, जिसे विश्व में फैले अनन्त देव ग्रहण कर सबों के कल्याण और शुभ के लिए पर्जन्य रूप में विविध वृष्टि कर पुनः विस्तृत रूप में हमें प्रदान करते हैं।
यज्ञो के विविध प्रकार-पितृयज्ञ
पितृयज्ञ जीवन में पोषण, रक्षण एवं विविध कल्याणों की अभिवृद्धि करने-कराने वाले गुरु-पितृ-बड़ों की भक्ति और सेवा ही पितृ-यज्ञ है । शरीर छोड़ने के उपरान्त भी उनकी आज्ञा मानकर चलना तथा उनके आत्म-कल्याण के लिए सत्कर्मों का अनुष्ष्ठान करना भी पितृयज्ञ ही है।
यज्ञो के विविध प्रकार-नृयज्ञ
नृ-यज्ञ अपने स्वार्थ की संकीर्णता को विशाल परार्थता में परिणति करने के लिए अपरिचित अयाचित अभ्यागतों की, देव और ईश्वर मानकर सेवा, अर्चन, भोजन, शयन, आदर और स्वागत वाणी से सत्कार करना ही नृ-यज्ञ है ।
यज्ञो के विविध प्रकार-वैश्वदेव यज्ञ
भूत-बलि या वैश्यदेव-यज्ञ स्थूल, सूक्ष्म, दिव्य जितने भी प्राणी या देव, सबों को तृप्त करने की भावना से भोज्य सामग्री की हवि प्रदान करना ही भूत या वैश्यदेव यज्ञ है । इससे व्यक्ति का हृदय और आत्मा विशाल होकर अखिल विश्व के प्राणियों के साथ एकता सम्मिलित का अनुभव करने में होता है ।