यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

आहुतियाँ गायत्रीमन्त्राहुतिः

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गायत्री मन्त्र की जितनी आहुतियाँ देनी हों, उसी अनुपात से सामग्री, घी, समिधा आदि की व्यवस्था पहले से ही कर लेनी चाहिए । मध्यमा और अनामिका अँगुलियों पर सामग्री रखी जाए । अँगूठे का सहारा देकर उसे आगे खिसकाने का प्रयोजन पूरा करना चाहिए । आहुति देने वाले सभी लोग साथ-साथ थोड़ा आगे हाथ बढ़ाकर आहुतियाँ डालें, जिससे सामग्री अग्नि में ही गिरे, इधर-उधर न बिखरे । आहुति एक साथ छोड़ें और हथेली ऊपर की दिशा में ही रहे । आहुति डालने के बाद 'इदं गायत्र्यै इदं न मम' का उच्चारण किया जाता है ।

इसका अर्थ यह है कि यह यज्ञानुष्ठान पुण्य-परमार्थ अपने स्वार्थ साधन के लिए नहीं, लोकमंगल के लिए किया गया है । जिस प्रकार अति सम्माननीय अतिथि को प्रेमपूर्वक भोजन परोसा जाता है, उसी प्रकार श्रद्धा-भक्ति और सम्मान की भावना के साथ अग्निदेव के मुख में आहुति दी जानी चाहिए, लोक कल्याण के लिए श्रम, तप, त्याग किया जा रहा है । जैसे अग्नि के स्पर्श से लकड़ी अग्नि रूप हो जाती है, उसी तरह यज्ञ पुरुष के सान्निध्य में आकर आहुति देते हुए जीवन को यज्ञमय बनाने का प्रयास किया जा रहा है । इन भावनाओं के साथ आहुतियाँ दी जानी चाहिए । गायत्री मन्त्र से २४ आहुतियाँ देनी चाहिए । समयानुसार संख्या को न्यूनाधिक किया जा सकता है ।

ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्, स्वाहा । इदं गायत्र्यै इदं न मम॥ ३६.३

नोट- आवश्यकतानुसार (जन्मदिन, विवाह दिन आदि) दीर्घ जीवन, उज्ज्वल भविष्य एवं सर्वतोभावेन कल्याण के लिए तीन बार या पाँच बार महामृत्युञ्जय मन्त्र से आहुति प्रदान की जा सकती है ।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृर्त्योमुक्षीय माऽमृतात्, स्वाहा॥ इदं महामृत्युञ्जयाय इदं न मम॥ ३.६०

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