स्रुचि (चम्मच जैसा, लम्बी डण्डी वाला काष्ठ पात्र) में मिष्टान्न और घी भरकर इसे केवल घी होम करने वाला ही देता है । आरम्भ और अन्त में कुछ विशेष कृत्य घृत होम करने वाले व्यक्ति को करने पड़ते हैं । यह सब वह अपने अन्य साथियों के प्रतिनिधि के रूप में करता है । स्विष्टकृत् आहुति अपने स्थान पर बैठे हुए करें ।
ॐ यदस्य कर्मणोऽत्यरीरिचं, यद्वान्यूनमिहाकरम् । अग्निष्टत् स्विष्टकृद् विद्यात्सर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे । अग्नये स्विष्टकृते सुुहुतहुते, सर्वप्रायश्चित्ताहुुतीनां कामानां, समर्द्धयित्रे सर्वान्नः कामान्त्समर्द्धय स्वाहा । इदं अग्नये स्विष्टकृते इदं न मम॥ -आश्व. गृ.सू. १.१०