यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

आहुतियाँ स्वष्टकृत्होमः

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यह प्रायश्चित्त आहुति भी कहलाती है । आहुतियों में जो कुछ भूल रही हो, उसकी पूर्ति के लिए यज्ञाग्नि के लिए नैवेद्य समर्पण के रूप में यह कृत्य किया जाता है । स्विष्टकृत् आहुति में मिष्टान्न समर्पित किया जाता है । मिष्टान्न का संकेत है सर्वाङ्गीण मधुरता । वाणी से मधुर-वचन, व्यवहार में मधुर शिष्टाचार, मन में सबके लिए मधुर संवेदनाएँ, हँसता-हँसाता हलका-फुलका मधुर स्वभाव यह मधुर मिष्टान्न का प्रतीक देवताओं के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है । अपना व्यक्तित्व मधुरतायुक्त विशेषताओं से ढला हुआ हो । हम मधुर बनकर भगवान् की सेवा में प्रस्तुत होते हैं । यह स्विष्टकृत् आहुति का प्रयोजन है ।

स्रुचि (चम्मच जैसा, लम्बी डण्डी वाला काष्ठ पात्र) में मिष्टान्न और घी भरकर इसे केवल घी होम करने वाला ही देता है । आरम्भ और अन्त में कुछ विशेष कृत्य घृत होम करने वाले व्यक्ति को करने पड़ते हैं । यह सब वह अपने अन्य साथियों के प्रतिनिधि के रूप में करता है । स्विष्टकृत् आहुति अपने स्थान पर बैठे हुए करें ।

ॐ यदस्य कर्मणोऽत्यरीरिचं, यद्वान्यूनमिहाकरम् । अग्निष्टत् स्विष्टकृद् विद्यात्सर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे । अग्नये स्विष्टकृते सुुहुतहुते, सर्वप्रायश्चित्ताहुुतीनां कामानां, समर्द्धयित्रे सर्वान्नः कामान्त्समर्द्धय स्वाहा । इदं अग्नये स्विष्टकृते इदं न मम॥ -आश्व. गृ.सू. १.१०

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