यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

विसर्जन -नीराजनम् - आरती

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आरती उतारने का तात्पर्य है कि यज्ञ भगवान् का सम्मान, परमार्थ परायणता का ज्ञान प्रकाश दसों दिशाओं में फैले, सर्वत्र उसी का शंख बजे, घण्टा-निनाद सुनाई पड़े और हर धर्मप्रेमी इस प्रयोजन के लिए उठ खड़ा हो । आरती में पैसे चढ़ाये जाते हैं अर्थात् ऐसे प्रयोजन के लिए सहयोग का परिचय दिया जाता है । यज्ञ भगवान् की आरती-प्रतिष्ठा ज्ञान दीपों के प्रकाश-विस्तार से ही सम्भव है । यज्ञीय परम्परा इस अनुष्ठान तक ही सीमित न रहे, वरन् उसके विस्तार की व्यवस्था भी यज्ञ प्रेमी करेंगे, इसी र्कत्तव्य का उद्घाटन प्रतीक रूप से आरती में किया जाता है । थाली में पुष्पादि से सजाकर आरती जलाएँ, तीन बार जल घुमाकर यज्ञ भगवान् व देव प्रतिमाओं की आरती उतारें, पुनः तीन बार जल घुमाकर उपस्थित जनों तक आरती पहुँचा दें । यह सारा कृत्य एक प्रतिनिधि करे, आवश्यकतानुसार आरती की संख्या बढ़ाई जा सकती है ।

ॐ यं ब्रह्मवेदान्तविदो वदन्ति, परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये । विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा, तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥
ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः, स्तुन्वन्ति दिव्यै स्तवैः, वेदैः सांगपदक्रमोपनिषदैः, गायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थित-तद्गतेन मनसा, पश्यन्ति यं योगिनो, यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः, देवाय तस्मै नमः॥



जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।
आदि शक्ति तुम अलख-निरंजन जग पालन कर्त्री ।
दुःख-शोक-भय-क्लेश-कलह-दारिद्र्य दैन्यहर्त्री॥ जयति०॥
ब्रह्मरूपिणी प्रणत पालिनी, जगत् धातृ अम्बे ।
भवभयहारी जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति०॥
भय-हारिणी भ्ाव-तारिणि अनघे, अज आन्ान्द राशी ।
अविकारी अघहारी अविचलित, अमले अविनाशी॥ जयति०॥
कामधेनु सत-चित आन्ान्दा, जय गङ्गा गीता ।
सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति०॥
ऋग्, यजु, साम, अथर्व प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे ।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना, शोभा गुण-गरिमे॥ जयति०॥
स्वाहा स्वधा शची ब्रह्माणी, राधा रुद्राणी ।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥ जयति०॥
जननी हम हैं, दीन-हीन, दुःख दारिद के घेरे ।
यदपि कुटिल कपटी कपूत, तऊ बालक हैं तेरे॥ जयति०॥
स्नेह सनी करुणामयि माता! चरण शरण दीजै ।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै॥ जयति०॥
काम-क्रोध मद-लोभ-दम्भ-दुर्भाव-द्वेष हरिये ।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥ जयति०॥
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि-पुष्टि त्राता ।
सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता॥ जयति०॥
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥


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