गीत संजीवनी-11

यज्ञ महिमा

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यज्ञरूप प्रभो! हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल- कपट को, मानसिक बल दीजिए॥

वेद की बोले ऋचाएँ, सत्य को धारण करें।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें॥

अश्वमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को।
धर्म- मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को॥

नित्य श्रद्घा- भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें।
रोग पीड़ित विश्व के, सन्ताप सब हरते रहें॥

कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की।
भावनाएँ शुद्ध होवे, यज्ञ से नर- नारि की॥

लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए।
वायु ,जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए॥

स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम- पथ विस्तार हो।
इदं न मम् का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो॥

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक, वन्दना हम कर रहे।
नाथ! करुणारूप करुणा, आपकी सब पर रहे॥

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