सरल एवं समग्र जीवन साधना - प्रज्ञायोगयह प्रज्ञा युग के अवतरण की बेला है। इन दिनों युग धर्म के अनुरूप आद्यशक्ति महाप्रज्ञा की उपासना आवश्यक है। अवतारों का एक- एक... See More
आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों से उपजने वाली अनेकानेक विपत्तियाँ मनुष्य को संत्रस्त करती रहती हैं। इनके नाम−रूप अनेक होते हुए भी उद्गम एक ही होता है–अन्तःकरण पर कषाय−कल्मषों का आवरण आच्छादन। समुद्र एक है, किन्तु उसमें जीव−जन्तु अनेक आकार−प्रकार के उत्पन्न होते रहते हैं। अन्तराल एक है, किन्तु... See More
मनुष्य को उसकी योग्यता के अनुसार ही ईश्वर शरीर-स्वास्थ्य, धारणा और इंद्रियाँ देता है। वास्तव में यह सारी चीजें परमात्मा द्वारा दान स्वरूप नहीं बल्कि उसकी योग्यता द्वारा प्राप्त इच्छा के अनुसार ही मिलती हैं।समय को बेकार खोना, मनोवासना के गुलाम होकर अपने जीवन को नष्ट करना है।जिस वाद-विवाद में... See More
निस्सन्देह हमारी आकृति मन की छाया मात्र है। विचारों का प्रतिबिम्ब स्पष्ट रूप से चेहरे पर झलकता है। भयभीत होने पर मुँह पीला पड़ जाता है, क्रोध आने पर आँखें लाल हो जाती हैं, स्वप्न से कामेच्छा होने पर स्वप्न दोष हो जाता है, स्वप्न में डर लगने या झगड़ा... See More