शिक्षा

शिक्षा एवं विद्या

शिक्षा उस चीज को कहते हैं, जो भौतिक आवश्यकताओं में सहायता कर सकती है। जानकारी का नाम शिक्षा और विद्या उस चीज का नाम है जो मनुष्य को कर्तव्यों के बारे में जिम्मेदारियों के बारे में सद्गुणों के बारे में अपने कर्मों और स्वभाव को सही बनाने के बारे में आदमी को आगाह करती है और उसके लाभ-हानि समझाती है और सही रास्ते पर चलना सिखाती है और बुरे मार्ग से बचना सिखाती है। इस तरह की प्रभावशाली जानकारी का नाम विद्या है और ये विद्या, उससे भी ज्यादा आवश्यक है जिसे शिक्षा कहते हैं। शिक्षा का महत्त्व मैं अभी आपको बता रहा था। वो प्रारंभिक बात थी, लेकिन इससे आगे मनुष्य को समर्थ और सबल, सही और अच्छा, उत्कृष्ट बनाना है, तो हमको शिक्षा के साथ-साथ में विद्या के अंगों का आवश्यक समावेश करना ही चाहिए भले ही आप उसको नैतिक शिक्षा कहिए भले ही उसको सांस्कृतिक शिक्षा कहिए भले ही उसको धार्मिक शिक्षा कहिए, भले ही उसको आध्यात्मिक शिक्षा कहिए। जो भी उसे कहा जाए नाम कुछ भी दिया जाए लेकिन उन चीजों का समावेश हमारी शिक्षा में अत्यधिक आवश्यक है जो पढ़ते समय बच्चों के मस्तिष्क-पर निरंतर ये छाप डालती है, कि हमको एक अच्छा नागरिक बनना है, हमको कर्तव्यपरायण नागरिक बनना है, हमें समाज का एक जिम्मेदार हिस्सा बनना है। कभी हमको राष्ट्र का नेतृत्व करना पड़े, समाज का नेतृत्व करना पड़े, किन किन बुराइयों से बचना है और किन किन बुराइयों से समाज को बचाना है। ये व्यक्ति और समाज के मूलभूत जीवन के, अंतरंग जीवन के बारे में जितनी गहरी जानकारी होगी, उतना ही आदमी का व्यक्तित्व, उतना ही आदमी का क्रिया कलाप सही होता हुआ चला जाएगा। यह बहुत ही आवश्यक है कि हम किस तरीके से अच्छा और ठीक जीवन जिएँ। इस तरह की शिक्षा हमारे देश में होनी ही चाहिए।


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