रूप शंका

Question: गायत्री मन्त्र के सम्बन्ध में एक शंका अक्सर उठाई जाती है कि उसके कई रूप हैं। कई लोग भिन्न-भिन्न ढंग से उसका उच्चारण करते या लिखते हैं। वस्तुतः शुद्ध रूप क्या है?


Ans:

इस सम्बन्ध में सारे ग्रन्थों का अध्ययन करने पर निष्कर्ष यही निकलता है कि गायत्री में आठ-आठ अक्षर के तीन चरण एवं चौबीस अक्षर हैं। भूः, भुवः, स्वः के तीन बीज मन्त्र- ओजस् तेजस् और वर्चस् को उभारने के लिए अतिरिक्त रूप से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक वेद मन्त्र के आरम्भ में एक ॐ लगाया जाता है। जैसे किसी व्यक्ति के नाम से पूर्व सम्मान सूचक ‘श्री’ मिस्टर, पण्डित, महामना आदि सम्बोधन जोड़े जाते हैं, उसी प्रकार ॐकार- तीन व्याहृति और तीन पाद समेत पूरा और सही गायत्री मन्त्र इस प्रकार लिखा जा सकता है- “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।” कई व्यक्ति इसी घटाने-बढ़ाने में अपनी-अपनी तिकड़म भिड़ाते देखे जाते हैं। कोई तीन ॐ- कोई पाँच ॐ लगाने की बात कहते हैं। कोई-कोई हर चरण के साथ एक ॐ जोड़ते हैं। कोई ब्राह्मणों की- क्षत्रियों की- वैश्यों की अलग-अलग गायत्री बताते हैं। यह अपनी-अपनी मनगढ़न्त है। वस्तुतः गायत्री का शुद्ध स्वरूप उतना ही है जितना कि ऊपर बताया गया। आर्ष ग्रन्थों में कहीं-कहीं तीन या सात व्याहृतियों के प्रयोग की, बीज मन्त्रों को भी साथ जोड़ने की चर्चा है। यह अपने-अपने विशेष प्रयोग उपचार हैं। शुद्ध गायत्री मात्र उतनी ही है जिसका उल्लेख किया गया।


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