Progress

Question: What are indications of progress in Sadhana?


Ans:

साधना का अर्थ जीवन के हर पक्ष में आदर्शवादिता और प्रामाणिकता समावेश है। जो भी इस कसौटी पर खरा उतरता है, उसको स्वर्णकार की तरह सम्मानपूर्वक उचित मूल्य मिलता है, पर पीतल को सोना बनाकर बेचने की फिराक में फिरने वाले को हर कहीं दुत्कारा जाता है।

गायत्री त्रिगुणात्मक है। उसकी उपासना से जहाँ सतोगुण बढ़ता है, वहाँ कल्याणकारक एवं उपयोगी रजोगुण की भी अभिवृद्धि होती है। रजोगुणी आत्मबल बढऩे से मनुष्य की गुप्त शक्तियाँ जाग्रत् होती हैं, जो सांसारिक जीवन के संघर्ष में अनुकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं। उत्साह, साहस, स्फूर्ति, निरालस्यता, आशा, दूरदर्शिता, तीव्र बुद्धि, अवसर की पहचान, वाणी मंव माधुर्य, व्यक्तित्व में आकर्षण, स्वभाव में मिलनसारी जैसी अनेक छोटी- बड़ी विशेषताएँ उन्नत तथा विकसित होती हैं, जिसके कारण ‘श्रीं’ तत्त्व का उपासक भीतर ही भीतर एक नये ढाँचे में ढलता रहता है। उसमें ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं, जिनके कारण साधारण व्यक्ति भी धनी, समृद्ध हो सकता है।

गायत्री मन्त्र से आत्मिक कायाकल्प हो जाता है। इस महामन्त्र की उपासना आरम्भ करते ही साधक को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे आन्तरिक क्षेत्र में एक नयी हलचल एवं रद्दोबदल आरम्भ हो गई है। सतोगुणी तत्त्वों की अभिवृद्धि होने तथा दुर्गुण, कुविचार, दु:स्वभाव एवं दुर्भाव घटने आरम्भ हो जाते हैं और संयम, नम्रता, पवित्रता, उत्साह, श्रमशीलता, मधुरता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, उदारता, प्रेम, सन्तोष, शान्ति, सेवा- भाव, आत्मीयता आदि सद्गुणों की मात्रा दिन- दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है। फलस्वरूप लोग उसके स्वभाव एवं आचरण से सन्तुष्ट होकर बदले में प्रशंसा, कृतज्ञता, श्रद्धा एवं सम्मान के भाव रखते हैं। इसके अतिरिक्त ये सद्गुण स्वयं इतने मुधर हैं कि जिस हृदय में इनका निवास होता है, वहाँ आत्मसन्तोष की परम शान्तिदायक निर्झरिणी सदा बहती रहती है।

गायत्री साधना से साधक के मन:क्षेत्र में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। विवेक, तत्त्वज्ञान और ऋतम्भरा बुद्धि की अभिवृद्धि हो जाने के कारण अनेक अज्ञानजन्य दु:खों का निवारण हो जाता है। प्रारब्धवश अनिवार्य कर्मफल के कारण कष्टसाध्य परिस्थितियाँ हर एक के जीवन में आती रहती हैं। हानि, शोक, वियोग, आपत्ति, रोग आक्रमण, विरोध, आघात आदि की विभिन्न परिस्थितियों में जहाँ साधारण मनोभूमि के लोग मृत्युतुल्य कष्ट पाते हैं, वहाँ आत्मबल सम्पन्न गायत्री साधक अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, सन्तोष, संयम, ईश्वर- विश्वास के आधार पर इन कठिनाइयों को हँसते- हँसते आसानी से काट लेता है। बुरी अथवा साधारण परिस्थितियों में भी अपने आनन्द का मार्ग ढूँढ़ निकालता है और मस्ती एवं प्रसन्नता का जीवन बिताता है।


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