अपने परिवार पर, परिजनों पर, प्रियजनों पर आयी हुई किसी आपत्ति के निवारण के लिये अथवा किसी आवश्यक कार्य में आई हुई किसी बड़ी रुकावट एवं कठिनाई को हटाने के लिये गायत्री साधना के समान दैवी सहायता के माध्यम कठिनाई से मिलेंगे। कोई विशेष कामना मन में हो और उसके पूर्ण होने में भारी बाधायें दिखाई पड़ रही हों, तो सच्चे हृदय से वेदमाता गायत्री को पुकारना चाहिये। माता जैसे अपने प्रिय बालक की पुकार सुनकर दौड़ी आती है, वैसे ही गायत्री की उपासिकाएँ भी माता की अमित करुणा का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त करती हैं।
नौ दिन का लघु अनुष्ठान, चालीस दिन का पूर्ण अनुष्ठान इसी पुस्तक में अन्यत्र वर्णित है। तत्कालीन आवश्यकता के लिये उनका उपयोग करना चाहिये। तपश्चर्या प्रकरण में लिखी हुई तपश्चर्याएँ भगवती को प्रसन्न करने के लिये प्राय: सफल होती हैं। एक वर्ष का ‘गायत्री उद्यापन’ सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला है, उसका उल्लेख आगे किया जायेगा। जैसे पुरुष के लिये गायत्री अनुष्ठान एक सर्वप्रधान साधन है, उसी प्रकार महिलाओं के लिये गायत्री उद्यापन की विशेष महिमा है। उसे आरम्भ कर देने में विशेष कठिनाई भी नहीं है और विशेष प्रतिबन्ध भी नहीं हैं। सरलता की दृष्टि से यह स्त्रियों के लिये विशेष उपयोगी है। माता को प्रसन्न करने के लिये उद्यापन की पुष्पमाला उसका एक परमप्रिय उपहार है।
नित्य की साधना में गायत्री चालीसा का पाठ महिलाओं के लिये बड़ा हितकारी है। जनेऊ की जगह पर कण्ठी गले में धारण करके महिलायें द्विजत्व प्राप्त कर लेती हैं और गायत्री अधिकारिणी बन जाती हैं। साधना आरम्भ करने से पूर्व उत्कीलन कर लेना चाहिए। इसी पुस्तक के पिछले पृष्ठों में गायत्री उत्कीलन के सम्बन्ध में सविस्तार बताया गया है।
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