कुमारियों के लिये आशाप्रद भविष्य की साधना

कुमारी कन्याएँ अपने विवाहित जीवन में सब प्रकार के सुख शान्ति की प्राप्ति के लिये भगवती की उपासना कर सकती हैं। पार्वती जी ने मनचाहा वर पाने के लिये नारद जी के आदेशानुसार तप किया था और वे अन्त में सफल मनोरथ हुई थीं। सीता जी ने मनोवाँछित पति पाने के लिये गौरी (पार्वती) की उपासना की थी। नवदुर्गाओं में आस्तिक घरानों की कन्यायें भगवती की आराधना करती हैं। गायत्री की उपासना उनके लिये सब प्रकार मंगलमयी है।

गायत्री के चित्र अथवा मूर्ति को किसी छोटे आसन या चौकी पर स्थापित करके उनकी पूजा वैसे ही करनी चाहिये, जैसे अन्य देव- प्रतिमाओं की होती है। प्रतिमा के आगे एक छोटी तस्वीर रख लेनी चाहिये और उसी पर चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, जल, भोग आदि पूजा सामग्री चढ़ानी चाहिये। मूर्ति के मस्तक पर चन्दन लगाया जा सकता है, पर यदि चित्र है तो उसमें चन्दन आदि नहीं लगाना चाहिए, जिससे उसमें मैलापन न आए। नेत्र बन्द करके ध्यान करना चाहिये और मन ही मन कम से कम २४ मन्त्र गायत्री के जपने चाहिये। गायत्री का चित्र या मूर्ति अपने यहाँ प्राप्त न हो सके, तो ‘गायत्री तपोभूमि मथुरा’ अथवा ‘शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार’ से मँगवा लेनी चाहिए। इस प्रकार की गायत्री साधना कन्याओं को उनके लिये अनुकूल वर, अच्छा घर तथा सौभाग्य प्रदान करने में सहायक होती है।

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