भक्तियोग

तीसरा वाला प्रकाश का जो ध्यान हमने बताया है, वह अंतःकरण का प्रकाश है, विश्वासों का प्रकाश है, आस्थाओं का, निष्ठाओं का, करुणा का प्रकाश है। जो चारों और प्रेम के रूप में प्रकाशित होता है। हम प्रेम के रूप में भक्तियोग कहते हैं। भक्तियोग से क्या मतलब होता है? भक्तियोग का मतलब है-मोहब्बत। जिस तरह से हम व्यायामशाला में अभ्यास करते हैं और उससे अपने शरीर और कलाइयों को मजबूत बनाते हैं और फिर उसका हर जगह इस्तेमाल करते हैं। सामान उठाने में, कपड़े धोने में, बिस्तर उठाने में करते हैं। हर जगह काम में लाते हैं-किसको? जो व्यायामशाला में ताकत इकट्ठा की थी उसको। इसी तरीके है हम भगवान के साथ मोहब्बत शुरू करते हैं, प्यार शुरू करते हैं, भक्ति करते हैं। भगवान की भक्ति के माध्यम से जो हम ताकत इकट्ठा करते हैं, उस मोहब्बत को हर जगह फैल जाना चाहिए। हम अपने शरीर को मोहब्बत करें ताकि इसको हम अस्त-व्यस्त न होने दें, नष्ट-भ्रष्ट न होने दें। हम अपने शरीर को प्यार करें ताकि वह नीरोग होकर के दीर्घजीवी बन सके। यह हमारा शरीर के प्रति प्यार है। यह भक्ति है शरीर के प्रति भगवान की। मन के प्रति हमारी भक्ति यह है कि हम पागलों के तरीके से अपने मन-मस्तिष्क को खराब न कर दें। यह देवमन्दिर है और इतना सुंदर मन्दिर है कि हमारे विचारों की क्षमता सूर्य की क्षमता के बराबर है। इसको हम असंतुष्टि न होने दें ।। हम अपने आप से प्यार करें। अपनी जीवात्मा से प्यार करें।


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