कर्मयोग

 भगवान का प्रकाश जब कभी शरीर में आएगा तो कर्मयोग के रूप में आएगा और आदमी कर्तव्यनिष्ठ होता हुआ दिखाई पड़ेगा। उसके लिए 'वर्क इज वरशिप' होगा। पूजा कर्म, श्रेष्ठ कर्म, आदर्श कर्म, लोकोपयोगी कर्म, मर्यादाओं से बँधे हुए कर्म सभी कर्मयोग के अंतर्गत आते हैं। जो हमें सिखाते हैं कि जब प्रकाश हमारे शरीर में आता है तो हमारे शरीर की प्रत्येक क्रिया को कर्मनिष्ठ होना चाहिए। परिश्रमी होना चाहिए। यह बताता है कि आदमी को जो प्रकाश का ध्यान करता है, उसे हरामखोर और आलसी नहीं होना चाहिए। चोर और हरामखोर मेरी दृष्टि से दोनों बराबर हैं। महाराज जी हमारा बेटा बड़ा हो गया है और खूब कमाता-खाता है और हम तो अपनी मौज करते हैं। नहीं बेटे, कामचोर और चोर में तो कामचोर ही बड़ा होता है। मनुष्य के लिए यह सबसे बड़ी गाली है। कामचोर सबसे खराब आदमी है। नहीं गुरुजी हमको तो पेंशन मिलती है और हम मौज करते हैं। नहीं बेटे, हम तुझे मौज नहीं करने देंगे। जब तक जिंदा है, तब तक शरीर से तुझे कर्म करना पड़ेगा। अपने लिए रोटी खाने, पेट भरने को है, दूसरों के लिए तो नहीं है। उसके लिए कर। गुरुजी ! हमारे बेटे तो पढ़ गए और हम अब निश्चिंत हो गए। तेरे ही तो पढ़ गए समाज के बेटे तो नहीं पढ़े। चल रात को नाइट स्कूल चलाया कर और दूसरों के बच्चों को पढ़ाया कर।
 
इसलिए मित्रो, क्या करना पड़ेगा कि जब वह प्रकाश, जो मैंने जप के साथ-साथ करने के लिए बताया है, अगर वह आपके भीतर नसों में स्फूर्ति के रूप में आए तो जब तक आप जिंदा हैं, तब तक हम काम करेंगे, कर्मयोगी बनेंगे, मेहनत करेंगे, मशक्कत करेंगे, श्रेष्ठ काम करेंगे, कर्तव्यों का पालन करेंगे। जो हमारे लिए, हमारे समाज के लिए, देश के लिए, धर्म के लिए सबके लिए कर्तव्यों का बंधन बँधा हुआ है, इसका हम पालन करेंगे। अगर इस तरह की स्फूर्ति और नाड़ी अभ्यास बन जाए तो मैं समझूँगा कि आप कर्मयोगी हैं और आपने उस प्रकाश के ध्यान को जो मैंने बताया था उसे सीख लिया और उसका मकसद समझ गए।


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