हिमालय की ऋषि परंपरा का पुनर्जागरण

  1. जमदग्नि पुत्र परशुराम के फरसे ने अनेकों उद्धत उच्छृंखलों के सिर काटे थे। शांतिकुंज से चलने वाली लेखनी, वाणी ने उसी परशु की भूमिका निभाई एवं असंख्यों की मान्यताओं, भावनाओं, विचारणाओं एव गतिविधियों में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है।
  2. भगीरथ ने जल दुर्भिक्ष के निवारण हेतु कठोर तप करके स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने में सफलता प्राप्त की थी। शांतिकुंज से ज्ञानगंगा का जो अविरल प्रवाह बहा है, उससे दुर्भिक्ष मिटेगा, सद्भावना का विस्तार चहुँओर होगा।
  3. चरक ऋषि ने केदारनाथ क्षेत्र के दुर्गम क्षेत्रों में वनौषधियों की शोध करके रोगग्रस्तों को नीरोग करने वाली संजीवनी खोज निकाली थी। शांतिकुंज में दुर्लभ औषधियों को खोज निकालने, उनके गुण-प्रभाव को आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों से जाँचने का प्रयोग चलता है।
  4. महर्षि व्यास ने व्यास गुफा में गणेश जी की सहायता से पुराण लेखन का कार्य किया था। प्रज्ञापुराण नवीनतम सृजन है, जिसमें कथा-साहित्य के माध्यम से उपनिषद्-दर्शन को जनसुलभ बनाया गया है।
  5. पतंजलि ने रुद्रप्रयाग में अलकनंदा एवं मंदाकिनी के संगम स्थल पर योग विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों का आविष्कार और प्रचलन किया था। शांतिकुंज में योग साधना के माध्यम से इस मार्ग पर चलने वाले जिज्ञासु साधकों को दिशाधारा प्रदान की जाती है।
  6. याज्ञवल्क्य ने त्रियुगी नारायण में यज्ञविद्या का अन्वेषण किया था। आज यज्ञविज्ञान की श्रृंखला को फिर से खोजकर समय के अनुरूप अन्वेषण करने का दायित्व ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ने अपने कंधों पर लिया है।
  7. विश्वामित्र गायत्री महामंत्र के द्रष्टा नूतन सृष्टि के सृजेता माने गए हैं। वह पवन भूमि यही गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज ही शब्द शक्ति पर वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वामित्र परंपरा का ही पुनरुज्जीवन है।
  8. जमदग्नि का गुरुकुल आरण्यक उत्तरकाशी में स्थित था। शांतिकुंज भी एक आरण्यक है।
  9.  देवर्षि नारद ने गुप्तकाशी में तपस्या की। वे निरंतर अपने वीणावादन से जनजागरण में निरत रहते थे। शांतिकुंज के युगगायन शिक्षण विद्यालय ने अब तक हजारों ऐसे परिव्राजक प्रशिक्षित किए हैं।
  10. देवप्रयाग में राम को योगवासिष्ठ का उपदेश देने वाले वसिष्ठ ऋषि धर्म और राजनीति का समन्वय करके चलते थे। शांतिकुंज भी वसिष्ठ परंपरा का निर्वाह करता है।
  11. आद्य शंकराचार्य ने ज्योतिर्मठ में तप किया एवं चार धामों की स्थापना देश के चार कोनों पर की। शांतिकुंज के तत्वावधान में २४०० गायत्री शक्तिपीठें विनिर्मित हुई हैं जहाँ से धर्मधारणा को समुन्नत करने का कार्य निरंतर चलता रहता है।
  12. ऋषि पिप्पलाद ने ऋषिकेश के समीप ही अन्न के मन पर प्रभाव का अनुसंधान किया था। वे पीपल वृक्ष के फलों पर निर्वाह करके आत्मसंयम द्वारा ऋषित्व पा सके। हमने २४ वर्ष तक जौ की रोटी एवं छाछ पर रहकर गायत्री अनुष्ठान किए।
  13. हर की पौड़ी हरिद्वार में सर्वमेध यज्ञ में हर्षवर्धन ने अपनी सारी संपदा तक्षशिला विश्वविद्यालय निर्माण हेतु दान कर दी थी। शांतिकुंज के सूत्रधार ने अपनी लाखों की संपदा गायत्री तपोभूमि तथा जन्मभूमि में विद्यालय निर्माण हेतु दे दी।
  14. कणाद ऋषि ने अथर्ववेदीय शोध परंपरा के अंतर्गत अपने समय में अणुविज्ञान का, वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का अनुसंधान किया था। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में अध्यात्म-देव एवं विज्ञान-दैत्य के समन्वय का समुद्र मंथन चल रहा है।
  15. बुद्ध के परिव्राजक संसार भर में धर्मचक्र प्रवर्तन हेतु दीक्षा लेकर निकले थे। शांतिकुंज में मात्र अपने देश में धर्मधारणा के विस्तार हेतु ही नहीं, संसार के सभी देशों में देव संस्कृति का संदेश पहुँचाने हेतु परिव्राजक दीक्षित होते हैं।
  16. आर्यभट्ट ने सौरमण्डल के ग्रह-उपग्रहों का ग्रह-गणित जाना था। शांतिकुंज में एक समग्र वेधशाला बनाई गई है एवं ज्योतिर्विज्ञान पर अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।
  17. चैतन्य महाप्रभु, संत ज्ञानेश्वर, समर्थ गुरु रामदास, प्राणनाथ महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस आदि सभी मध्यकालीन संतों की धर्मधारणा विस्तार परंपरा का अनुसरण शांतिकुंज में किया गया है।


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