बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका

अध्याय- ६-भाग - १ मैदानी खेल

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   बालक स्वभावतः चंचल होते हैं। एक ही स्थान पर अधिक समय तक उन्हें बैठना थोड़ा कठिन लगता है। संस्कार वर्ग की समय- सारणी में थोड़ा सा समय मनोरंजन का भी होता है। मनोरंजन के उत्तम विकल्प बालकों के लिए उपलब्ध कराना, यह भी हमारा कर्तव्य बनता है। मनोरंजन के आकर्षण से भी अधिक बालक वर्ग में आते हैं और अच्छी बातें सीख लेते हैं। इस पुस्तिका में मनोरंजन के ऐसे खेल समाविष्ट किये गये हैं, जिनका मनोरंजन के साथ- साथ कुछ सिखाने में भी उपयोग हो।
सायंकाल के सत्र में मैदान पर खेलने हेतु अधिकतम बालक एक साथ खेल सकें तथा अत्यल्प साहित्य की आवश्यकता हो, इसी प्रकार के खेल चुने गये हैं। मैदानी खेल से संघ भावना का विकास, हार- जीत को सहने की शक्ति, तथा उत्तम आरोग्य हेतु सर्वांगीण विकास, ये सभी बातें अनायास ही बालकों में आरोपित हो जाती हैं।

१. भारत माता
      किसी भी एक बालक को सामने बुलाकर उसे कमर पर हाथ रखकर खड़ा होने को कहें। बालक की आकृति लगभग भारत के मानचित्र जैसी बन जाती है। यह ‘‘भारत माता है’’ ऐसा कह कर भिन्न- भिन्न शहर कहाँ पर हैं? यह अन्य बालकों से पूछें। सिर पर जम्मू- काश्मीर, छाती पर ‘‘दिल्ली’’ बायें हाथ के मध्य पर ‘‘गुवाहटी’’ मुम्बई कमर के दाहिनी ओर, चेन्नई बाँये घुटने के पास, इस प्रकार अनेक शहरों के बारे में पूछा जा सकता है। शहरों के नामों की चिठ्ठीयाँ बनाकर उन्हें यथास्थान कपड़े पर लगाया भी जा सकता है। समूह में छोटे बालकों की संख्या अधिक होने पर नगरों के स्थान पर राज्यों को लिया जा सकता है। भारत का मानचित्र ठीक प्रकार समझने के लिए यह खेल उपयुक्त है।
२. शब्द संग्रह बढ़ाओ
      ‘‘राजधानी रायगढ़’’ इस शब्द को फलक पर लिखें। और इन शब्दों के अक्षरों से अधिक से अधिक शब्द बनाने को कहें। शब्द बनाते समय अक्षर किन्हीं भी मात्राओं सहित हो सकता है। परन्तु फलक पर लिखे शब्दों के अतिरिक्त अन्य किसी शब्द का उपयोग करना मना होगा। प्रारंभ में बालकों को मिलकर शब्द बनाने को कहें। उदा.- राजा, राधा, रानी, राम, राग आदि, जीरा, जीजी, जगत्, धारा, धागा, धान्य, गया, गाय, नीरा, नीला, नीज, नारायण इस प्रकार अनेक शब्द बालक मिलकर बना सकेंगे। वर्ग में थोड़ी देर खेल खेलने के उपरान्त दूसरे दिन उन्हें घर से और अधिक से अधिक शब्द बनाकर लाने को कहें। अधिक से अधिक शब्द बनाने वाले बालक की सबके सम्मुख प्रशंसा करना न भूलें। इसी प्रकार ‘‘गीता परिवार’’ इस शब्द से भी कई शब्द बन सकते हैं। इस खेल में बनने वाले शब्दों की संख्या १०००- १५०० बन सकती है, ऐसा अनुभव है।
३. पैर उठा नहीं सकते
      किसी एक बालक को सम्मुख बुलाएँ। एक हाथ व एक पैर दीवार से पूर्णतया चिपका रहे, इस प्रकार उसे खड़ा करें। दीवार की सहायता लिये बिना दूसरा पैर ऊपर उठाने को कहें। शरीर का गुरुत्व- केन्द्र दीवार के समान्तर हो जाने से कितना भी प्रयास किया जाय, दूसरा पैर उठाना सम्भव नहीं होता। अन्य बालक भी इस का आनन्द लें।
४. गोंद लगाये बिना बालक कुर्सी पर चिपक गया
   किसी भी एक बालक को बुलाकर कुर्सी पर बैठने को कहें। कुर्सी पर बैठने पर उसके पैर भूमि पर लगे रहें, इसका ध्यान रखा जाय। इस हेतु लम्बे बालक का चयन करना होगा। अब उसे सीना आगे झुकाये बिना उठने को कहें। इस प्रकार उठना असम्भव होगा। गोंद लगाये बिना बालक कुर्सी पर चिपक गया, यह देखकर सभी बालकों को आनन्द आयेगा।
५. प्राणी को पहचानो
    इस खेल के लिये गाय, भैंस, ऊँट, घोड़ा, कुत्ता, गधा, सिंह, साँप इत्यादि नाम की स्पष्ट और बड़ी पट्टियाँ तैयार करें। एक बालक को बुलाकर उसे दिखाई न दे, इस प्रकार से एक पट्टी उसकी पीठ पर आलपिन से लगाकर सबको दिखाएँ। अपनी पीठ पर क्या लिखा है, यह उसे पहचानना है। इस हेतु उसे हाँ या ना अथवा प्रश्न में ही उत्तर निहित हो, ऐसे प्रश्न समक्ष बैठे बालकों से पूछने हैं। उदा.- मैं पालतू हूँ क्या? मैं पेड़ पर रहता हूँ या भूमि पर? जंगल में रहता हूँ या गाँव में? मुझे सींग हैं या नहीं? मैं दूध देती हूँ क्या? मैं शाकाहारी हूँ या माँसाहारी? इत्यादि।
सामान्यतः १५ से २० प्रश्नों में उत्तर मिल जाना चाहिये। उत्तर न बता पाने पर उसे छोटा सा दण्ड (उठक- बैठक)दिया जाय। प्रारम्भ में खेल समझाकर स्वयं भी एक प्राणी पहचान कर दिखाएँ।

६. अफवाएँ कैसे फैलती हैं?
आओ देखें अफवाएँ कैसे फैलती हैं। सबको एक घेरे में फासला देते हुए खड़ा कर दो। सीटी बजते ही घेरे में खड़े किसी एक खिलाड़ी को यह संदेश दे दीजिए कि ‘‘झण्डू का भाई मण्डू कुएँ में गिर गया, जल्दी स्ट्रेचर लाओ।’’ वह अपने से दायीं ओर के साथी को वह संदेश कान में सुनाएगा। इस प्रकार पूरे सदस्यों के पास से होता हुआ यह संदेश अन्तिम बच्चे तक आएगा। वह प्रशिक्षक के पास आकर जोर से संदेश को सुनाएगा। संदेश निश्चित रूप से बिगड़ा हुआ होगा। इस खेल का यह भी उद्देश्य है कि हमें किसी की सुनी- सुनाई बात पर तुरंत यकीन नहीं कर लेना चाहिए।
नोट- १. आवाज इतनी धीमी हो कि तीसरे को संदेश सुनाई न दे।
२. जिस समय संदेश दिया जा रहा हो, तीसरा खिलाड़ी अपना मुँह दूसरी ओर फेर लेगा।
३. संदेश को ध्यान से व धीरे- धीरे सुनाना है।
४. यदि कोई संदेश समझे नहीं तो फिर से एक बार सुनाने की अनुमति दे दें।
५. इसी प्रकार अन्य चटपटे से संदेश तैयार किए जा सकते हैं।
६. जब भी खेल को खिलाया जाये, नया संदेश तैयार करें।
७ .सम्बधित कहावतें बताओ
यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ मुहावरे आदि दिये गये हैं। बालकों से इसी तरह और मुहावरे/कहावतें बताने को कहें। दो समूह बना देने पर अंत्याक्षरी जैसा खेल भी खेल सकते हैं।
हाथः- अपना हाथ जगन्नाथ।
हाथ कंगन को आरसी क्या।
पेटः- पेट नरम, पैर गरम, सिर ठण्डा, वैद्य आए तो मारो डण्डा।
पहले पेट- पूजा फिर काम दूजा।
कानः- दीवारों के भी कान होते हैं।
जीभः- जीभ तारक भी है, मारक भी।
रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई सरग पताल। आपहुँ तो भीतर गई, जूती खात कपाल।
बगलः- मुँह में राम बगल में छुरी।
मन :- मन चंगा तो कठौती में गंगा।
दाँतः- खाने के दाँत अलग, दिखाने के अलग।
दाँत हैं तो चने नहीं, चने हैं तो दाँत नहीं।
पैरः- नाचने वाले के पैर थिरकते हैं। पाँव तले जमीन खिसकना।
होंठः- अपने ही दाँत, अपने ही होंठ।
नेत्रः- आँखें हैं तो जहान है।
पीठः- पीठ पर मारो, पेट पर मत मारो।
चमड़ीः- चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।

८. उलटी संख्या
       बालकों को दो भागों में बाँटा जाता है। पहले भाग के किसी बालक को १५०या १०० से उलटे क्रम में १५०, १४९..या १००,९९,९८..संख्या कहने को कहा जाता है। कहते समय रुकने पर या गलत कहने पर उसे रोका जाता है। अधिक से अधिक संख्या कहने वाला बालक विजयी होता है।
९. काका- काकी क्या करते हैं
       पाँच- पाँच बच्चों के गण बनाइये। एक दूसरे का स्वर ठीक से सुन सकें, इस प्रकार उन्हें बैठाइये। प्रत्येक गण को अपनी बारी आने पर एक वाक्य बोलना है। वाक्य बोलते हुए बालकों को निम्नांकित नियमों का पालन करना आवश्यक है।
१. वाक्य का कर्ता काका या काकी ही होना चाहिए।
२. वाक्य के बीच का शब्द ‘‘ड़ी’’ अक्षर से अन्त होने वाला हो।
३. वाक्य अर्थपूर्ण होना चाहिए।
४. बीच का शब्द प्रत्येक बार नया होना आवश्यक है।
जैसे- काका की गाड़ी आयी, काकी ने साड़ी पहनी, काका की पगड़ी गिरी इत्यादि।
वाक्य याद करने को आधे मिनट का समय दिया जाय। वाक्य याद न आने पर वह गण निरस्त किया जाएगा। बचे हुए गणों में अन्त तक खेल चलता रहेगा। पपड़ी, नाड़ी, ताड़ी, साड़ी, सिड़ी, चुड़ी, खाड़ी, जाड़ी इत्यादि शब्दों का उपयोग करते हुए बच्चे झटपट वाक्य बनाते हैं। खेल में तो मनोरंजन होता ही है। साथ- साथ शब्द- शक्ति, कल्पना- शक्ति, स्मरण- शक्ति का विकास भी होता है।
१०. प्राणियों की कहावतें
      इस खेल में पाँच से छः बालकों के तीन- चार समूह बनाइये। एक बुद्धिमान बालक हर एक समूह में हो, इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा सारे होशियार बालक एक ही गण में आने पर खेल का आनन्द कम हो जाता है।
      इस खेल में अपनी बारी आने पर हर एक गण को प्राणियों से सम्बन्धित एक- एक कहावत कहनी है। जैसे कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी, ऊँट के मुँह में जीरा, कुत्ता भौंके हाथी अपनी चाल चले, भैंस के आगे बीन बजाना, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, आ बैल मुझे मार, छुछुन्दर के सिर में चमेली का तेल इत्यादि। सभी बच्चों को स्पर्धा समझाने हेतु उदाहरण के तौर पर एक दो कहावतें कहिए और स्पर्धा आरम्भ कर दीजिए। जो गण आधे मिनट के समय में कहावत बोलने में असफल होगा, उस पर एक अंक चढ़ेगा।
११. ‘र’ की अंत्याक्षरी
     यह खेल बालकों में शब्द- संग्रह, स्मरण- शक्ति, कल्पना- शक्ति के विकास हेतु उपयुक्त है। सुनार, लुहार, चमार, कुम्हार, मार, पार, ज्वार, जैसे ‘‘र’’ से अन्त होने वाले शब्द बनाकर, उनमें क्रिया पद जोड़ कर अर्थपूर्ण वाक्य मंडल में बैठे बालकों को एक- एक करके बोलने को कहिए। जो बालक वाक्य बोलने में असफल हो, उसे खेल से अलग करके एक ओर बिठाइये।
       सुनार गहने बनाता है, सितार सुन्दर बज रहा है, रविवार को छुट्टी है; इत्यादि वाक्य उदाहरण के तौर पर बताइए। गँवार, चार नर, टमाटर, हार इत्यादि शब्दों से बालक झटपट वाक्य बनाते हैं। डॉक्टर, कार, सर इत्यादि अंग्रेजी रूढ़ शब्दों को स्वीकार कर सकते हैं। अन्तिम बचे पाँच- छः बच्चों में रोचक खेल होता है।

१२. काका जी के काम
       यह खेल स्मरण- शक्ति विकास के लिये अत्यंत उपयुक्त है। सर्वप्रथम बालकों को निम्रांकित घटना सुनाइए। खेल का स्वरूप बाद में बताना है। घटना इस प्रकार है-
काकाजी कचहरी की ओर चलने को हुए। आज वेतन मिलने वाला था। वे घर से बाहर निकल ही रहे थे कि पत्नी ने कहा ‘‘अजी सुनते हो! आज लौटते हुए सेब, चीकू, खीरा और टमाटर ले आना।’’ ‘लेता आऊँगा’ काका जी ने कहा ‘‘पिताजी! मेरे लिए क्रिकेट का सामान याने बैट, बॉल और स्टम्प लाना मत भूलियेगा’’ महेश बोला। ‘‘हाँ- हाँ, जरूर ले आऊँगा’’ काकाजी बोले।
      ‘‘साथ में मेरे लिए बेल्ट, सफेद मोजे और लाल रिबन लाना मत भूलना’’ बेटी बोली ‘‘नहीं भूलूँगा’’ काकाजी ने उत्तर दिया। ‘‘अरे! मेरा चश्मा सुधारने के लिये भेजा है और रामायण बाइंडिंग के लिये दी हुयी है, वह वस्तु याद से ले आना, बेटा!’’ पिताजी ने कहा ‘‘और पूजा के लिए हार और प्रसाद लाना मत भूलना’’ माँ ने फरमाया। माँ बाबूजी आपकी वस्तु जरूर ले आऊँगा- काकाजी ने कहा। ‘‘अरे! सभी की वस्तुओं की सूची बन गयी, पर अपने कपड़ों के बारे में भी सोचा है कभी? घिसकर कितने पुराने हो गये हैं, आते समय शर्ट और पैंण्ट के लिये कपड़ा जरूर ले आना।’’ पत्नी ने हिदायत दी ‘‘अच्छी याद करायी’’ काकाजी ने तत्काल कहा।
      ‘‘ओ काकाजी! कृपया इस फटी नोट को बाजार से बदल कर लाना’’ पड़ोसन ने आकर कहा। ‘‘ला देता हूँ’’ काकाजी बुदबुदाये।
काकाजी ने सारी बातें ध्यान से सुनीं और कचहरी की ओर चल पड़े। शाम को लौटते हुए ध्यान से सारी वस्तुएँ ले आये।
अब बालकों से कापी पेन निकालकर काकाजी के कामों की सूची बनाने के लिये कहिये। जिसकी सूची सबसे लम्बी और जल्दी बनेगी, उसे शाबासी देना मत भूलिये। कुल मिलाकर अठारह काम हैं।
१३. उलटा पुलटा
     इस खेल में कहावत के शब्दों को उलट- पुलट कर प्रशिक्षक कहता है और बालक सही क्रम से कहावतें कहते हैं जैसेः-
१. फिर चार चाँदनी दिन की रात अंधेरी (चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात)
२. पहाड़ नीचे है अब के आया ऊँट (अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे)
३. छम् पड़े घम् छड़ी छम् विद्या आये घम् (छड़ी पड़े छम् छम् विद्या आये घम् घम्)
४. नाम नयन आँख सुख अन्धे के (आँख के अन्धे नाम नयन सुख)
५. गंगू भोज कहाँ तेली राजा कहाँ (( कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली)
६. रोओ दीदे अपने अन्धे के खोओ आगे (अन्धे के आगे रोओ, अपने दीदे खोओ)
७. टेढ़ा आये आँगन नाच ना (नाच ना आये आँगन टेढ़ा)
८. अदरक बंदर जाने स्वाद का क्या (बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद)
९. चढ़ा और नीम करेला (करेला और नीम चढ़ा)
१०. होगा कर भला भला (कर भला होगा भला)
उपर्युक्त प्रकार से और भी कहावतें बन सकती हैं।
बालकों से भी कहावतें उलट- पुलट कर पूछने को कहा जा सकता है।
१४. आओ थोड़ा हँसें
      इस खेल में बालकों को कागज के दो लम्बे- लम्बे टुकड़े दीजिए। पहले टुकड़े में कर्ता और दूसरे में वाक्य का शेष भाग लिखने को कहिए जैसेः-
पहला टुकड़ा (कर्ता) दूसरा टुकड़ा (शेष वाक्य)
१. लड़के खेल रहे हैं।
२. साँप रेंगता है।
३. चाँद चमक रहा है।
४. हवा बहती है।
५. कुत्ता भौंकता है।
६. सितार बज रहा है।
७. बरफ पिघल रही है।
८. मेंढक फुदकता है।
९. लड़की भाग रही है।
१०. माँ गा रही है।
११. बच्चा रो रहा है।
कर्ता के स्थान पर व्यक्ति का नाम न हो; जैसे (राम- शामू, उषा, प्रभा) दोनों पर्चियाँ मोड़कर अलग- अलग स्थान पर एकत्रित कीजिए। हर बच्चे को एक- एक कर बुलाइये और पहली (कर्ता) और दूसरी (शेष वाक्य) एक- एक पर्ची उठाकर पढ़ने के लिए कहिए। अब प्रत्येक वाक्य का कर्ता बदला होगा। पढ़ते हुए बड़ा मजा आएगा, जैसे लड़का रेंग रहा है, सितार भौंक रहा है, बरफ फुदक रही है, इत्यादि निरर्थक वाक्य तैयार होंगे और हँसी का वातावरण बनेगा। ऐसा भी हो सकता है कि किसी का पूर्ण वाक्य सही जुड़ जाय। ऐसा होने पर तालियाँ बजाकर अभिनन्दन कीजिये।

 १५. पुर का महापुर
        यह भी सूची बनाने की एक प्रतियोगिता है। अपने देश का मानचित्र बालक ध्यान से देखे। शहरों के नाम याद रखने की दृष्टि से यह प्रतियोगिता अत्यन्त उपयुक्त है। स्पर्धा में बालकों को ‘पुर’ से अन्त होने वाले शहरों की (जैसे कानपुर, रायपुर, नागपुर गोरखपुर आदि) सूची बनानी है। आरंभ में दस मिनट का समय देकर वर्ग में यह सूची बनाने को कहिए। बाद में सूची का विस्तार एक सप्ताह का समय देकर घर पर करने को कहिए। शहर के नाम के आगे जिला एवं राज्य लिखना जरूरी है। सिंगापुर जैसे विदेशी नाम भी चल सकते हैं। इस तरह ७००- ८०० शहरों की सूची संगमनेर के बालकों ने बनायी थी।
१६. चित्र भारत माता का
         इस खेल के लिए ड्राईंग पेपर एवं स्केच पेन आवश्यक है। प्रथमतः पाँच- पाँच बालकों के गण बनाइए एवं प्रत्येक गण को दो ड्राईंग पेपर तथा ४ स्केच पेन दीजिए। आपसी चिंतन से बालकों को भारत की आज की स्थिति एवं उनके सपनों का भारत, ऐसे दो चित्र बनाने हैं। जिसमें आज भारत देश में क्या समस्याएँ हैं, इसका पहला चित्र बनेगा (जैसे भ्रष्टाचार, जनसंख्या वृद्धि, रोग, प्रदूषण, व्यसनाधीनता, अस्वच्छता, दूरदर्शनग्रस्त युवा पीढ़ी आदि) दूसरे चित्र में उनका इसी विषय में क्या सपना है, इसका वे चित्रांकन करेंगे। २० से ३० मिनट समय देकर पहले चर्चा करें, फिर चित्र बनाने को कहिए। चित्र पूर्ण होने पर प्रत्येक गण उनके बनाये हुए चित्र की जानकारी अन्य बालकों को देंगे।



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