गायत्री मंत्र में ज्ञान विज्ञान


ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

गायत्री संसार के समस्त ज्ञान- विज्ञान की आदि जननी है ।। वेदों को समस्त प्रकार की विद्याओं का भण्डार माना जाता है, वे वेद गायत्री की व्याख्या मात्र हैं ।। गायत्री को 'वेदमाता' कहा गया है ।।

गायत्री के २४ अक्षरों में संसार का समस्त ज्ञान- विज्ञान भरा हुआ है ।। यह सब गायत्री का ही अर्थ विस्तार है ।।गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं।। तत्त्वज्ञानियों ने इन अक्षरों में बीज रूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियाँ तथा चौबीस सिद्धियाँ कहा जाता है ।। देवर्षि, ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि इसी उपासना के सहारे उच्च पदासीन हुए हैं ।। 'अणोरणीयान महतो महीयान' यही महाशक्ति है ।।

 

अर्थात् -- हे मुनि ! अब सुनो कि गायत्री के २४ अक्षरों में कौन- कौन २४ शक्तियाँ भरी पड़ी हैं ।। (१) वामदेवी (२) प्रिया (३) सत्या (४) विश्वा (५) भद्र विलासिनी (६) प्रभावती (७) शान्ता (८) कान्ता (९) दुर्गा (१०) सरस्वती (११) विदु्रमा (१२) विशालेशा (१३) व्यापिनी (१४) विमला (१५) तमोपहारिणी (१६) सूक्ष्मा (१७) विश्वयोनि (१८) जया (१९) यशा (२०) पद्मालया (२१) परा (२२) शोभा (२३) भद्रा (२४) त्रिपदा ।।... See More

गायत्री बीज 'ॐकार' है ।। उसकी सत्ता तीनों लोक (भूर्भुवः स्वः) लोकों में संव्याप्त है ।। साधक के लिए उसे 24 अक्षर सिद्धियों एवं उपलब्धियों से भरे- पूरे हैं ।। इन अक्षरों में सन्निहित प्रेरणाओं को अपनाने वाले साधक निश्चित रूप से आप्तकाम बनते हैं और उस तरह खिन्न उद्विग्न... See More

गायत्री के चौबीस अक्षरों से संबंधित कलाएँ एवं मातृकाएँ इस प्रकार हैं - (१) तापिनी (२) सफला (३) विश्वा (४) तुष्टा (५) वरदा (६) रेवती (७) सूक्ष्मा (८) ज्ञाना (९) भर्गा (१०) गोमती (११) दर्विका (१२) थरा (१३) सिंहिका (१४) ध्येया (१५) मर्यादा (१६) स्फुरा (१७) बुद्धि (१८) योगमाया (१९) योगात्तरा (२०)... See More

गायत्री के चौबीस अक्षरों से संबंधित मातृकाएँ एवं कलाएँ इस प्रकार हैं - (१) चन्द्रकेश्वरी (२) अजतवला (३) दुरितारि (४) कालिका (५) महाकाली (६) श्यामा (७) शान्ता (८) ज्वाला (९) तारिका (१०) अशोका (११) श्रीवत्सा (१२) चण्डी (१३) विजया (१४) अंकुशा (१५) पन्नगा (१६) विर्वाक्षी (१७) वेला (१८) धारिणी (१९) प्रिया (२०)... See More

गायत्री ब्रह्मकल्प में देवताओं के नामों का उल्लेख इस तरह से किया गया है-१-अग्नि, २-वायु, ३-सूर्य, ४-कुबेर, ५-यम, ६-वरुण, ७-बृहस्पति, ८-पर्जन्य, ९-इन्द्र, १०-गन्धर्व, ११-प्रोष्ठ, १२-मित्रावरूण, १३-त्वष्टा, १४-वासव, १५-मरूत, १६-सोम, १७-अंगिरा, १८-विश्वेदेवा, १९-अश्विनीकुमार, २०-पूषा, २१-रूद्र, २२-विद्युत, २३-ब्रह्म, २४-अदिति ।... See More

तस्मात् उच्चारण तस्य त्राणयेव भविष्याति॥           -गायत्री संहिताअर्थात् गायत्री का एक- एक अक्षर साक्षात् देव स्वरूप है ।। इसलिए उसकी आराधना से उपासक का कल्याण ही होता है ।।... See More

अर्थात्- गायत्री के २४ अक्षरों के द्रष्टा २४ ऋषि यह है-(१) वामदेव, (२) अत्रि, (३) वशिष्ठ, (४) शुक्र, (५) कण्व, (६) पाराशर, (७) विश्वामित्र, (८) कपिल, (९) शौनक, (१०) याज्ञवल्क्य, (११) भारद्वाज, (१२) जमदग्नि, (१३) गौतम, (१४) मुद्गल, (१५) वेदव्यास, (१६) लोमश, (१७) अगस्त्य, (१८) कौशिक, (१९) वत्स, (२०) पुलस्त्य,... See More

अर्थात्- हे नारद ! गायत्री के २४ अक्षरों में २४ छन्द सन्निहित हैं-(१) गायत्री, (२) उष्णिक, (३) अनुष्टुप, (४) वृहती, (५) पंक्ति, (६) त्रिष्टुप, (७) जगती, (८) अतिजगती, (९) शक्वरी, (१०) अतिशक्वरी, (११) धृति, (१२) अतिधृति, (१३) विराट्, (१४) प्रस्तार पंक्ति, (१५) कृति, (१६) प्रकृति, (१७) आकृति, (१८) विकृति, (१९)... See More

चौबीस अवतारों की गणना कई प्रकार से की गई हैं ।। पुराणों में उनके जो नाम गिनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है ।। दस अवतारों के सम्बन्ध में प्रायः जिस प्रकार की सहमान्यता है, वैसी चौबीस अवतारों के संबंध में नहीं है ।। किन्तु गायत्री के अक्षरों के अनुसार... See More

अर्थात्- (१) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, (२) पाँच कर्मेन्द्रियां, (३) पाँच तत्त्व, (४) पाँच तन्मात्राएँ - शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श ।। यह 20 हुए ।। इनके अतिरिक्त अन्तःकरण चतुष्टय ( मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ) यह 24 हो गये ।। परमात्म पुरुष इन सबसे ऊपर 25 वाँ है ।।... See More

छन्द- विद्या के अन्तर्गत साधना- विधान का जो उल्लेख मिलता है, उसे मुद्रा कहा जाता है ।। मुद्राओं में यों कई ग्रंथों में मात्र अंगुलि संचालन की सामान्य क्रियाओं को ही पर्याप्त मान लिया गया है और गायत्री उपासकों को उन्हें ही कर लेने पर काम चल सकने का आश्वासन... See More

अर्थात्- (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) अग्नि, (४) वायु, (५) आकाश, (६) गन्ध, (७) रस, (८) रूप, (९) शब्द, (१०) स्पर्श, (११) उपस्थ, (१२) गुदा, (१३) पाद, (१४) पाणि, (१५) वाणी, (१६) प्राण, (१७) जिह्वा, (१८) चक्षु, (१९) त्वचा, (२०) श्रोत्र, (२१) प्राण, (२२) अपान, (२३) व्यान और  (२४) समान... See More

गायत्री के चौबीस बीज मंत्रों से युक्त २४ यंत्रों के नाम इस प्रकार हैं-१) ॐ गायत्री यंत्रम्, २ ) ह्रीं ब्राह्मी यंत्रम्, ३) णं वैष्णवी यंत्रम्, ४) शं शाम्भवी यंत्रम्, ५) ओं विद्या यंत्रम्, ६) ळृं देवेश यंत्रम्, ७) स्त्रीं मातृ यंत्रम्,८) ऋं ऋत् यंत्रम्, ९) उं निर्मला यंत्रम्, १०)... See More

तवशिष्ठगायत्रीअग्निपीलापृथ्वीब्राह्मीसुमुखंतपनीआयुष्यअज्ञान दोषहरंत्सभरद्वाजउष्ण्कवायुश्यामजलगौरीसम्पुटम्सकलाआरोग्यउपपातकहरंविगौतमअनुष्टुपसूर्यश्वेततेजप्रभाविततम्विश्वाऐश्वर्यमहापातकहरंतु विश्वामित्रबृहतीविद्युत्नीलावायुनित्याविस्तृतंतुष्टाधनदुष्टग्रहदोषहरंर्वभृगुपंक्ति यमअग्निआकाशविश्वाएकमुखंवरदाकामभ्रूणहत्यादोषहरंरेशांडिल्यत्रिष्ठुपवरुणअतिशुभ्र गंधभद्राद्विमुखंरेवतीविद्याअगम्यागमनहरंणिलोहितव्यक्तिवृहस्पति हरित रसविलासिनी त्रिमुखं सूक्ष्माकामअभक्षाभक्ष्यहरंयंगर्गकान्तिपर्ज्ान्यअग्निपीतरूपवित्ताचर्तुमुखंज्ञानाधनपुरुषहत्याहरंभ शातातपबृहतीइन्द्रताम्रस्पर्शकालीपंचमुखीभर्गासन्ततिगौहत्याहरंर्गो सनत्कुमारसत्यागन्धर्वलाल शब्दजयाषण्मुखंगोमतीअभीष्ट स्रीहत्याहरंदेशुनःशेपपंक्तित्वष्टाश्यामवाक्कान्ताअधोमुखं दर्विका इष्टकन्याऐनसदोषहरंवभार्ग्ावविराट्मैत्रावरुण पीलापाणिशान्ताशकटम्वराकान्तिकायरोगदोषहरंस्यपाराशरविभ्राट्पौष्णविद्युत्पाददुर्गायमपाशंसिद्धान्ता चिन्तितसिद्धिपितृभ्रातृदोषहरंधी पुण्डरीक विस्तारपंक्ति सुरेशशुभासर्स्व्उपस्थसरस्वती ग्रंथितं ध्योनाकीर्तिपूर्वजनितपापहरंमकुत्सकत्यायनी मरुतलालवायुविद्युद्वार्णाउन्मुखोमुखं मर्यादा सौभाग्या सर्वपापहरंहिदक्षपंक्तिसौम्यनीलाश्रोत्रविशालाप्रलम्बम् स्फुटाअभीष्टसिद्धिप्रतिग्रहदोषहरंधिकश्यपत्रिष्टुपअंगिरालालत्वचाविभूतिमुष्टिकबुद्धित्रैलोक्यमोहनप्रायरुपक्षेपहरंयोजमदग्निजगतीविश्वेदेवारुक्म चक्षुकमलामत्स्ययोगमाया पराश्रयप्रदमनःसर्वपापहरंसदृशयोआतोयमहाजगती अश्विनी स्वर्णिमजिह्वा कलाकूर्मयोगान्तरा देवप्रतिग्रहइन्द्रपदप्राप्तिसूर्यनःविष्णुमहिष्मती प्रजापति श्वेतनासिकापाष्मावराहकं पृथ्वीत्रैलोक्यविष्णुपदप्राप्तिप्रअंगिरानृमतीकुबेररोचनाभमनअचलासिंहाक्रातं प्रभवापरानुग्रहरुद्रपदप्राप्तिचोकुमारभूछन्दशंकरचन्द्र सदृश अहंकारपरामहाक्रान्नित उष्मातेजस्ब्रह्मपदप्राप्तिदमृगश्रृंगभुवःब्रह्मापीलाबुद्धिभृशोलामुद्गरंदिध्यामान स्वर्गसायुज्यपदयात्भगस्वःविष्णुशुफा वर्णगुदावज्रद्वायपल्लवंनिरंजनास्वर्गलोकसर्वव्यापित्व... See More



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