र्कम्मेन्दिरयाणि पंचैव पंच बुद्धीन्दि्रयाणि च ।।
पंच पंचेन्द्रिरयार्थश्च भूतानाम् चैव पंचकम्॥
मनोबुद्धिस्तथात्याच अव्यक्तं च यदुत्तमम् ।।
चतुर्विंशत्यथैतानि गायत्र्या अक्षराणितु॥
प्रणवं पुरुषं बिद्धि र्सव्वगं पंचविशकम्॥
अर्थात्- (१)
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, (२)
पाँच कर्मेन्द्रियां, (३)
पाँच तत्त्व, (४)
पाँच तन्मात्राएँ -
शब्द,
रूप,
रस,
गंध,
स्पर्श ।। यह 20 हुए ।। इनके अतिरिक्त
अन्तःकरण चतुष्टय (
मन,
बुद्धि,
चित्त,
अहंकार ) यह 24 हो गये ।।
परमात्म पुरुष इन सबसे ऊपर 25 वाँ है ।।
तत्त्वज्ञानियों ने गायत्री मंत्र में अनेकानेक तथ्यों को ढूँढ़ निकाला है और यह समझने- समझाने का प्रयत्न किया है कि गायत्री मंत्र के २४ अक्षर में किन रहस्यों का समावेश है ।। उनके शोध निष्कर्षों में से कुछ इस प्रकार हैं-
(१)
ब्रह्म- विज्ञान के २४ महाग्रंथ हैं ।।
४ वेद, ४ उपवेद, ४ ब्राह्मण, ६ दर्शन, ६ वेदाङ्ग ।। यह सब मिलाकर
२४ होते हैं ।। तत्त्वज्ञों का ऐसा मत है कि गायत्री के २४ अक्षरों की व्याख्या के लिए उनका विस्तृत रहस्य समझाने के लिए इन शास्त्रों का निर्माण हुआ है ।।
(२)
हृदय को जीव का और
ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है ।। हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी २४ अंगुल है ।। इस दूरी को पार करने के लिए २४ कदम उठाने पड़ते हैं ।। २४ सद्गुण अपनाने पड़ते हैं- इन्हीं को २४ योग कहा गया है ।।
(३)
विराट् ब्रह्म का शरीर २४ अवयवों वाला है ।। मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग २४ ही हैं ।।
(४)
सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाहिकी नाड़ियों में २४ प्रधान हैं ।।
ग्रीवा में ७,
पीठ में १२,
कमर में ५ इन सबको मेरुदण्ड के सुषुम्ना परिवार का अंग माना गया है ।।
(५)
गायत्री को अष्टसिद्धि और नवनिद्धियों की अधिष्ठात्री माना गया है ।। इन दोनों के समन्वय से शुभ गतियाँ प्राप्त होती हैं ।। यह २४ महान् लाभ गायत्री परिवार के अन्तर्गत आते हैं ।।
(६)
सांख्य दर्शन के अनुसार यह सारा सृष्टिक्रम २४ तत्त्वों के सहारे चलता है ।। उनका प्रतिनिधित्व गायत्री के २४ अक्षर करते हैं ।।
ऐसे- ऐसे अनेक कारण और आधार है, जिनसे गायत्री में २४ ही अक्षर क्यों हैं,
इसका समाधान भी मिलता है ।। विश्व की महान् विशिष्टताओं के मिलते ही परिकर
ऐसे हैं, जिनका जोड़ २४ बैठ जाता है ।। गायत्री मंत्र में उन परिकरों का
प्रतिनिधित्व रहने की बात, इस महामंत्र में २४ की ही संख्या होने से,
समाधान करने वाली प्रतीत हो सकती है ।।
'महाभारत' का विशुद्ध स्वरूप
प्राचीन काल में
'भारत- संहिता' के नाम से प्रख्यात था ।। उसमें २४०००
श्लोक थे-
''चतुर्विंशाति साहस्रीं चक्रे भारतम्'' में उसी का उल्लेख है ।।
इस प्रकार महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रचियताओं ने किसी न किसी रूप में गायत्री के
महत्व को स्वीकार करते हुए उसके प्रति किसी न किसी रूप में अपनी श्रद्धा
व्यक्त की है ।।
वाल्मीकि रामायण में हर एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक अक्षर का सम्पुट है ।।
श्रीमद् भागवत के बारे में भी यही बात है
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