दैवतानि शृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वशः ।
आग्नेयं प्रथम प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम्॥
तृतीय च तथा सोम्यमीशानं च चतुर्थकम् ।
सावित्रं पञ्चमं प्रोक्तं षष्टमादित्यदैवतम्॥
वार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैवावरुणमष्टमम् ।
नवम भगदैवत्यं दशमं चार्यमैश्वरम्॥
गणेशमेकादशकं त्वाष्ट्रं द्वादशकं स्मृतम् ।
पौष्णं त्रयोदशं प्रोक्तमैद्राग्नं च चतुर्दशम्॥
वायव्यं पंचदशकं वामदेव्यं च षोडशम् ।
मैत्रावरुण दैवत्यं प्रोक्तं सप्तदशाक्षरम्॥
अष्ठादशं वैश्वदेवमनविंशंतुमातृकम् ।
वैष्णवं विंशतितमं वसुदैवतमीरितम्॥
एकविंशतिसंख्याकं द्वाविंशं रुद्रदैवतम् ।
त्रयोविशं च कौवेरेगाश्विने तत्वसंख्यकम्॥
चतुर्विंशतिवर्णानां देवतानां च संग्रहः ।
-गायत्री तंत्र प्रथम पटल ।
गायत्री ब्रह्मकल्प में देवताओं के नामों का उल्लेख इस तरह से किया गया है-
१-
अग्नि, २-
वायु, ३-
सूर्य, ४-
कुबेर, ५-
यम, ६-
वरुण, ७-
बृहस्पति, ८-
पर्जन्य, ९-
इन्द्र, १०-
गन्धर्व, ११-
प्रोष्ठ, १२-
मित्रावरूण, १३-
त्वष्टा, १४-
वासव, १५-
मरूत, १६-
सोम, १७-
अंगिरा, १८-
विश्वेदेवा, १९-
अश्विनीकुमार, २०-
पूषा, २१-
रूद्र, २२-
विद्युत, २३-
ब्रह्म, २४-
अदिति ।
अर्थात्- हे प्राज्ञ ! अब गायत्री के २४ अक्षरों में विद्यमान २४ देवताओं के नाम सुनों-
(१)
अग्नि (२)
प्रजापति (३)
चन्द्रमा (४)
ईशान (५)
सविता (६)
आदित्य (७)
बृहस्पति (८)
मित्रावरुण (९)
भग (१०)
अर्यमा (११)
गणेश (१२)
त्वष्टा (१३)
पूषा (१४)
इन्द्राग्नि (१५)
वायु (१६)
वामदेव (१७)
मैत्रावरूण (१८)
विश्वेदेवा (१९)
मातृक (२०)
विष्णु (२१)
वसुगण (२२)
रूद्रगण (२३)
कुबेर (२४)
अश्विनीकुमार ।
गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों को २४ देवताओं का शक्ति - बीज मंत्र माना गया है । प्रत्येक अक्षर का एक देवता है । प्रकारान्तर से इस महामंत्र को २४ देवताओं का एवं संघ, समुच्चय या संयुक्त परिवार कह सकते हैं । इस परिवार के सदस्यों की गणना के विषय में शास्र बतलाते हैं-
गायत्री मंत्र का एक-एक अक्षर एक-एक देवता का प्रतिनिधित्व करता है । इन २४ अक्षरों की शब्द शृंखला में बँधे हुए २४ देवता माने गये हैं-
गायत्र्या वर्णमेककं साक्षात् देवरूपकम् । तस्मात् उच्चारण तस्य त्राणयेव भविष्यति॥
-गायत्री संहिता
अर्थात्-गायत्री का एक-एक अक्षर साक्षात् देव स्वरूप है । इसलिए उसकी आराधना से उपासक का कल्याण ही होता है ।
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