गायत्री चक्र


तवशिष्ठगायत्रीअग्निपीलापृथ्वीब्राह्मीसुमुखंतपनीआयुष्यअज्ञान दोषहरं
त्सभरद्वाजउष्ण्कवायुश्यामजलगौरीसम्पुटम्सकलाआरोग्यउपपातकहरं
विगौतमअनुष्टुपसूर्यश्वेततेजप्रभाविततम्विश्वाऐश्वर्यमहापातकहरं
तु विश्वामित्रबृहतीविद्युत्नीलावायुनित्याविस्तृतंतुष्टाधनदुष्टग्रहदोषहरं
र्वभृगुपंक्ति यमअग्निआकाशविश्वाएकमुखंवरदाकामभ्रूणहत्यादोषहरं
रेशांडिल्यत्रिष्ठुपवरुणअतिशुभ्र गंधभद्राद्विमुखंरेवतीविद्याअगम्यागमनहरं
णिलोहितव्यक्तिवृहस्पति हरित रसविलासिनी त्रिमुखं सूक्ष्माकामअभक्षाभक्ष्यहरं
यंगर्गकान्तिपर्ज्ान्यअग्निपीतरूपवित्ताचर्तुमुखंज्ञानाधनपुरुषहत्याहरं
भ शातातपबृहतीइन्द्रताम्रस्पर्शकालीपंचमुखीभर्गासन्ततिगौहत्याहरं
र्गो सनत्कुमारसत्यागन्धर्वलाल शब्दजयाषण्मुखंगोमतीअभीष्ट स्रीहत्याहरं
देशुनःशेपपंक्तित्वष्टाश्यामवाक्कान्ताअधोमुखं दर्विका इष्टकन्याऐनसदोषहरं
वभार्ग्ावविराट्मैत्रावरुण पीलापाणिशान्ताशकटम्वराकान्तिकायरोगदोषहरं
स्यपाराशरविभ्राट्पौष्णविद्युत्पाददुर्गायमपाशंसिद्धान्ता चिन्तितसिद्धिपितृभ्रातृदोषहरं
धी पुण्डरीक विस्तारपंक्ति सुरेशशुभासर्स्व्उपस्थसरस्वती ग्रंथितं ध्योनाकीर्तिपूर्वजनितपापहरं
मकुत्सकत्यायनी मरुतलालवायुविद्युद्वार्णाउन्मुखोमुखं मर्यादा सौभाग्या सर्वपापहरं
हिदक्षपंक्तिसौम्यनीलाश्रोत्रविशालाप्रलम्बम् स्फुटाअभीष्टसिद्धिप्रतिग्रहदोषहरं
धिकश्यपत्रिष्टुपअंगिरालालत्वचाविभूतिमुष्टिकबुद्धित्रैलोक्यमोहनप्रायरुपक्षेपहरं
योजमदग्निजगतीविश्वेदेवारुक्म चक्षुकमलामत्स्ययोगमाया पराश्रयप्रदमनःसर्वपापहरं
सदृश
योआतोयमहाजगती अश्विनी स्वर्णिमजिह्वा कलाकूर्मयोगान्तरा देवप्रतिग्रहइन्द्रपदप्राप्ति
सूर्य
नःविष्णुमहिष्मती प्रजापति श्वेतनासिकापाष्मावराहकं पृथ्वीत्रैलोक्यविष्णुपदप्राप्ति
प्रअंगिरानृमतीकुबेररोचनाभमनअचलासिंहाक्रातं प्रभवापरानुग्रहरुद्रपदप्राप्ति
चोकुमारभूछन्दशंकरचन्द्र सदृश अहंकारपरामहाक्रान्नित उष्मातेजस्ब्रह्मपदप्राप्ति
दमृगश्रृंगभुवःब्रह्मापीलाबुद्धिभृशोलामुद्गरंदिध्यामान स्वर्गसायुज्यपद
यात्भगस्वःविष्णुशुफा वर्णगुदावज्रद्वायपल्लवंनिरंजनास्वर्गलोकसर्वव्यापित्व


गायत्री पंचांग में गायत्री चौबीस अक्षरों से सम्बन्धित ऋषि, छन्द, देवता, वर्ण, तत्त्व, शक्ति, मुद्रा कला तथा उनकी उपासना से मिलने वाली फलश्रुति का वर्णन किया गया है।।


उपरोक्त चक्र को 'गायत्री चक्र' कहा जाता है ।। इसमें गायत्री महामंत्र में सन्निहित समस्त रहस्यों को बीज रूप में दर्शाया गया है ।। गायत्री उपासक इन रहस्यों के गूढ़ार्थ को समझकर उपासना करते और ऋद्धि- सिद्धि एवं स्वर्ग मुक्ति के अधिकारी बनते हैं ।।
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