२४ अक्षरों से २४ तत्व

पृथव्यापस्तथा तेजो वायुराकाश एव च॥ १०॥
गन्धो रसश्च रूपम् च शब्दः स्पर्शस्तथैव च॥
उपस्थम् पायुपदम च पाणि बागपि च क्रमात्॥ ११॥
प्राणम् जिह्वा च चक्षुश्चत्वक्श्रोत्रम च ततः परं ।।
प्राणोऽपानस्तथा व्यानः समानश्च ततः परम् ॥ १२॥
तत्त्वान्येतानि वर्णानां क्रमशः कीर्तितानितु ।।
                                                                                                                 -गायत्री तंत्र द्वितीय पटल

अर्थात्-

(१) पृथ्वी, (२) जल, (३) अग्नि, (४) वायु, (५) आकाश, (६) गन्ध, (७) रस, (८) रूप, (९) शब्द, (१०) स्पर्श, (११) उपस्थ, (१२) गुदा, (१३) पाद, (१४) पाणि, (१५) वाणी, (१६) प्राण, (१७) जिह्वा, (१८) चक्षु, (१९) त्वचा, (२०) श्रोत्र, (२१) प्राण, (२२) अपान, (२३) व्यान और  (२४) समान ।।


सृष्टि की पदार्थ- सम्पदा का वर्गीकरण करने की दृष्टि से जिन पंच तत्त्वों की चर्चा की जाती है, उसे भौतिक जगत् की सृजन सामग्री कहा जाता है ।। उस सामान्य वर्गीकरण का विज्ञानवेत्ताओं ने अधिक गंभीर विश्लेषण किया है, तो उनकी संख्या १०० से भी अधिक हो गई है ।। यह भौतिक जगत् की तत्त्व चर्चा हुई ।। आत्मिक क्षेत्र में चेतना ही सर्वस्व है ।। इस चेतना को जिन- जिन माध्यमों की अपने अस्तित्व का परिचय देने, संवेदनाएँ ग्रहण करने तथा अभीष्ट प्रयोजन सम्पन्न करने में आवश्यकता पड़ती है, उन्हें तत्त्व कहा गया है ।। ऐसे चेतन तत्त्व २४ हैं ।। इसी गणना में भौतिक पंचतत्त्वों की भी गणना की जाती है ।।

सांख्य दर्शन में जिन २४ तत्त्वों का उल्लेख है, वे पदार्थ परक नहीं, वरन् चेतना को प्रभावित करने वाली तथा चेतना से प्रभावित होने वाली सृष्टि धाराएँ हैं ।। ऐसी धाराओं की गणना २४ की संख्या में की गई हैं ।। इन्हें प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति की सृष्टि संचालन एवं जीवन प्रवाह में महत्त्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न करने वाली दिव्य- धाराएँ सम्पदाएँ, सृष्टि प्रेरणाएँ कहा जा सकता है ।। प्रवाह परिकर को गायत्री महाशक्ति की सशक्त स्फुरणायें समझा जा सकता है ।। गायत्री तत्त्वदर्शन की विवेचना इसी रूप में होती रही है ।।

इसके अतिरिक्त २४ तत्त्वों का एक अन्य प्रतिपादन इस प्रकार मिलता है-

(१) पृथ्वी, (२) जल, (३) तेज, (४) वायु, (५) आकाश, (६) गन्ध, (७) रस, (८) रूप, (९) स्पर्श, (१०) शब्द, (११) वाक्, (१२) पैर, (१३) गुदा, (१४) जननेन्द्रिरय, (१५) त्वचा, (१६) नेत्र, (१७) कान, (१८) जीभ, (१९) नाक, (२०) मन, (२१) बुद्धि, (२२) अहंकार, (२३) चित्त और (२४) ज्ञान ।।

इस तरह-
चतुर्विशाक्षरी विद्या पर तत्त्व विनिर्मिता ।।
तत्करातु यात्कार पयतं शब्द ब्रह्मस्वरूपिणी॥
                                                                                        - गायत्री तंत्र

अर्थात्- तत् से लेकर प्रचोदयात् के २४ अक्षरों वाली गायत्री परातत्त्व अर्थात् परा- विद्या से ओत- प्रोत है ।।

सच्ची गायत्री उपासना का महात्म्य और प्रतिफल शास्त्रकारों ने जिस प्रकार बताया है, उसे देखते हुए यही प्रतीत होता है कि सर्वतोमुखी आत्म- प्रगति के पथ पर बढ़ने के लिए गायत्री विद्या का महत्व असाधारण है ।। कहा गया है-

परब्रह्म स्वरूपा च निर्वाण पददायिनी ।।
ब्रह्मतेजोमयी शक्ति स्तधिष्ठातृ देवता ।।


अर्थात्- गायत्री परब्रह्म स्वरूप तथा निर्वाण पद देने वाली है ।। वह ब्रह्म तेज शक्ति की अधिष्ठात्री देवी है ।।

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