चौबीस अवतारों की गणना कई प्रकार से की गई हैं ।। पुराणों में उनके जो नाम
गिनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है ।। दस अवतारों के सम्बन्ध में प्रायः
जिस प्रकार की सहमान्यता है, वैसी चौबीस अवतारों के संबंध में नहीं है ।।
किन्तु गायत्री के अक्षरों के अनुसार उनकी संख्या सभी स्थलों में पर 24 ही
है ।। उनमें से अधिक प्रतिपादनों के आधार पर जिन्हें 24 अवतार ठहराया गया
है वे यह हैं-
(1) नारायण (विराट), (2) हंस, (3) यज्ञ पुरुष, (4) मत्स्य, (5) कर्म, (6) वाराह, (7) वामन, (8) नृसिंह, (9) परशुराम, (10) नारद, (11) धन्वतरि, (12) सनत्कुमार, (13) दत्तात्रेय, (14) कपिल, (15) ऋषभदेव, (16) हयग्रीव, (17) मोहनी, (18) हरि, (19) प्रभु, (20) राम, (21) कृष्ण, (22) व्यास, (23) बुद्ध और (24) निष्कलंक -प्रज्ञावतार ।।
'मार्कण्डेय पुराण' में शक्ति अवतार की कथा इस प्रकार है कि सब
देवताओं से उनका तेज एकत्रित किया गया और उनकी सम्मिलित शक्ति का संग्रह-
समुच्चय आद्य- शक्ति के रूप प्रकट हुआ ।। इस कथानक से स्पष्ट है क स्वरूप
एक रहने पर भी उसके अन्तर्गत विभिन्न घटकों का सम्मिलन- समावेश है ।।
गायत्री के 24 अक्षरों की विभिन्न शक्ति धाराओं को देखते हुए यही कहा जा
सकता है कि उस महासमुद्र में अनेक महानदियों ने अपना अनुदान समर्पित-
विसर्जित किया है ।। फलतः उन सबकी विशेषताएँ भी इस मध्य केन्द्र में
विद्यमान है ।। 24 शब्दों को अनेकानेक शक्ति शक्तिओं का एकीकरण कह सकते हैं
।। यह धाराएँ कितने ही स्तर की हैं- कितनी ही दिशाओं से आई हैं ।। कितनी ही विशेषताओं से
युक्त हैं ।। उन वर्गों का उल्लेख अवतारों- देवताओं, दिव्य- शक्तियों,
ऋषियों के रूप में हुआ है ।। शक्तियों में से कुछ भौतिकी हैं, कुछ आत्मिकी
।। इनके नामकरण उनकी विशेषताओं के अनुरूप हुए हैं ।। शास्त्र में इन भेद-
प्रभेद का सुविस्तृत वर्णन हैं ।।
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