गायत्री मंत्र


चौबीस अक्षरों का गायत्री महामंत्र भारतीय संस्कृति के वाङ्मय का नाभिक कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। यह संसार का सबसे छोटा एवं एक समग्र धर्मशास्त्र है। यदि कभी भारत जगद्गुरु- चक्रवर्ती रहा है तो उसके मूल में इसी की भूमिका रही है। गायत्री मंत्र का तत्त्वज्ञान कुछ ऐसी उत्कृष्टता अपने अन्दर समाए है कि उसे हृदयंगम कर जीवनचर्या में समाविष्ट कर लेने से जीवन परिष्कृत होता चला जाता है। वेद, जो हमारे आदिग्रन्थ हैं, उनका सारतत्त्व गायत्री मंत्र की व्याख्या में पाया जा सकता है।

इस आधार पर इसे ईश्वरीय निर्देश, शास्त्र-वचन एवं आप्तजन-कथन के रूप में अपनाया जा सकता है। गायत्री के विषय में गीता का वाक्य है- 'गायत्री छंदसामहम्’। भगवान् कृष्ण ने कहा है कि ‘छंदों में गायत्री में स्वयं हूँ’, जो विद्या-विभूति के रूप में गायत्री की व्याख्या करते हुए विभूति योग में प्रकट हुई है। - आद्यशक्ति गायत्री की समर्थ साधना  

नाम-जप का तात्पर्य है-जिस परमेश्वर को, उसके विधान को आमतौर से हम भूले रहते हैं, उसको बार-बार स्मृति-पटल पर अंकित करें, विस्मरण की भूल न होने दें। सुरदुर्लभ मनुष्य-जीवन की महती अनुकंपा और उसके साथ जुड़ी हुई स्रष्टा की आकांक्षा को समझने, अपनाने की मानसिकता बनाए रहने का नित्य प्रयत्न करना ही नाम-जप का महत्व और माहात्म्य है। साबुन रगड़ने से शरीर और कपड़ा स्वच्छ होता है। घिसाई-रंगाई करने से निशान पड़ने और चमकने का अवसर मिलता है। जप करने वाले व्यक्तित्व को इसी आधार पर विकसित करें।  - जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र

गायत्री के नौ शब्द ही महाकाली की नौ प्रतिमाएँ हैं, जिन्हें आश्विन की नवदुर्गाओं में विभिन्न उपचारों के साथ पूजा जाता है। देवी भागवत् में गायत्री की तीन शक्तियों- ब्राह्मी वैष्णवी, शाम्भवी के रूप में निरूपित किया गया है और नारी- वर्ग की महाशक्तियों को चौबीस की संख्या में निरूपित... See More

मन्त्र विद्या के वैज्ञानिक जानते हैं कि जीभ से जो शब्द निकलते हैं, उनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्धा, ओष्ठ, दन्त, जिह्वमूल आदि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है। इस उच्चारण काल में मुख के जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाड़ी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों... See More

संक्षेप में गायत्री मंत्र लेखन के नियम निम्न प्रकार हैं-१. गायत्री मंत्र लेखन करते समय गायत्री मंत्र के अर्थ का चिन्तन करना चाहिए।२. मंत्र लेखन में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।३. स्पष्ट व शुद्ध मंत्र लेखन करना चाहिए।४. मंत्र लेखन पुस्तिका को स्वच्छता में रखना चाहिए। साथ ही उपयुक्त स्थान पर... See More

ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।। गायत्री संसार के समस्त ज्ञान- विज्ञान की आदि जननी है ।। वेदों को समस्त प्रकार की विद्याओं का भण्डार माना जाता है, वे वेद गायत्री की व्याख्या मात्र हैं ।। गायत्री को 'वेदमाता' कहा गया है ।।गायत्री के २४... See More



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