गायत्री की २४ मस्तिष्कीय शक्ति


देवतानि शृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वशः ।।
आग्नेयं प्रथमं प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम्॥
तृतीयं च तथा सौम्यमीशानं च चतुर्थकम् ।।
सावित्रं पञ्चमं प्रोक्तं षष्टमादित्यदैवतम्॥

बार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैत्रावरुणमष्टमम् ।।
नवमं भगदवत्यं दशमं चौर्यमैश्वरम्॥
गणेशमेकादशकं त्वाष्ट द्वादशकं स्मृतम् ।।
पौष्णं त्रयोदशं प्रौक्तमैद्राग्नं च चतुर्दशम्॥

वायव्यं पंचदशकं वामदैब्धं च षोडशम् ।।
मैत्रावरुणा दैवत्यं प्रोक्तं सप्तशाक्षरम्॥
अष्ठादशं वैश्वदेवमुनविंशतिमातृकम् ।।
वैष्णवं विशतितमं वसुदैवतमीरितम्॥

एकविंश्तसंख्याकं द्वाविंशं रुद्रदैवतम् ।।
त्रयोविशं च कौबेरेमाश्विनं तत्वसंख्यकम्॥
चतुर्विंशतिवर्णानां दैवतानां च संग्रहः॥

                                                                                                             -गायत्री तंत्र प्रथम पटल




तस्मात् उच्चारण तस्य त्राणयेव भविष्याति॥           -गायत्री संहिता

अर्थात् गायत्री का एक- एक अक्षर साक्षात् देव स्वरूप है ।। इसलिए उसकी आराधना से उपासक का कल्याण ही होता है ।।

हे प्राज्ञ ! अब गायत्री के 24 अक्षरों में विद्यमान 24 देवताओं के नाम सुनो-

(1) अग्नि, (2) प्रजापति, (3) चन्द्रमा, (4) ईशान, (5) सावित्री, (6) आदित्य, (7) बृहस्पति, (8) मित्रावरुण, (9) भाग, (10) ईश्वर, (11) गणेश, (12) त्वष्टा, (13) पूषा, (14) इन्द्राणी, (15) वायु, (16) वामदेव, (17) मैत्रावरुण, (18) वैश्वदेव, (19) मातृक, (20) विष्णु, (21) वसुगण, (22) रुद्रगण, (23) कुबेर और  (24) अश्विनीकुमार ।।

गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों को 24 देवताओं का शक्ति बीज मंत्र माना गया है ।। प्रत्येक अक्षर का एक देवता है ।। प्रकारान्तर से इस महामंत्र को 24 देवताओं का एवं संघ- समुच्चय या संयुक्त परिवार कह सकते हैं ।। इस परिवार के सदस्यों की गणना के विषय में शास्त्र बतलाते हैं ।।
गायत्री मंत्र का एक- एक अक्षर एक- एक देवता का प्रतिनिधित्व करता है ।। इन 24 अक्षरों की शब्द- शृंखला में बँधे हुए 24 देवता माने गये हैं ।।
छन्द शास्त्र की दृष्टि से चौबीस अक्षरों के तीन विराम वाले पद्य को 'गायत्री' कहते हैं ।। मन्त्रार्थ की दृष्टि से उसमें सविता तत्व का ध्यान और प्रज्ञा प्रेरणा का विधान सन्निहित है ।। साधना- विज्ञान की दृष्टि से गायत्री मंत्र का हर अक्षर बीज मंत्र है ।। उन सभी का स्वतंत्र अस्तित्व है ।। उस अस्तित्व के गर्भ में एक विशिष्ट शक्ति- प्रवाह समाया हुआ है ।।

गुलदस्ते में कई प्रकार के फूल होते हैं ।। उनके गुण, रूप, गन्ध आदि में भिन्नता होती है ।। उन सबको एक सूत्र में बाँधकर, एक पात्र में सजाकर रख दिया जाता है तो उसका समन्वित अस्तित्व एक विशिष्ट शोभा- सौन्दर्य का प्रतीक बन जाता है ।। गायत्री मंत्र को एक ऐसा ही गुलदस्ता कहा जा सकता है, जिसमें 24 अक्षरों के अलग- अलग सामर्थ्य से भरे- पूरे प्रवाहों का समन्वय है ।।
औषधियों में कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं ।। उनके पृथक- पृथक गुण हैं, पर उनका समन्वय एक विशिष्ट गुण युक्त बन जाता है ।। गायत्री को एक ऐसी औषधि कह सकते हैं, जिसमें बहुमूल्य शक्ति- तत्त्व घुले हैं ।।
 
मशीनें भिन्न- भिन्न छोटे- छोटे कल पुर्जों से मिलकर बनती हैं ।। हार में अनेक मणि- मुक्ता गुँथे होते हैं ।। सेना में कितने ही सैनिक रहते हैं ।। शरीर में कितनी ही नस- नाड़ियाँ हैं ।। कपड़े में कितने ही धागे होते हैं ।। इन सब के समन्वय से विशिष्ट क्षमता उत्पन्न होती है ।। गायत्री का हर घटक महत्त्वपूर्ण है, पर उनका समन्वय जब संयुक्त शक्ति के रूप में प्रकट होता है तो उस समन्वय की सामर्थ्य असीम हो जाती है ।।

एक विशेष पर्वतीय प्रदेश की भूमि, वहाँ की वायु, वहाँ की वनस्पतियों, रासायनिक पदार्थों के सम्मिश्रण के कारण गंगोत्री से आरम्भ होने वाला जल विशेष प्रकार के अद्भूत गुणों वाला बन गया ।। इसी प्रकार चौबीस अक्षरों से, उपयोगी तत्त्वों का कारणवश सम्मिश्रण हो जाने से आन्तरिक आकाश में एक विद्युत्मयी सूक्ष्म सरिता बह निकली ।। इस अध्यात्म गंगा का नाम गायत्री रखा गया ।। जिस प्रकार गंगा नदी में स्नान से शारीरिक व मानसिक स्वस्थता प्राप्त होती है, उसी प्रकार उस आकाश वाहिनी विद्युत्मयी गायत्री शक्ति की समीपता से आन्तरिक एवं बाह्य बल तथा वैभवों की उपलब्धि होती है ।।

'मार्कण्डेय पुराण' में शक्ति अवतार की कथा इस प्रकार है कि सब देवताओं से उनका तेज एकत्रित किया गया और उनकी सम्मिलित शक्ति का संग्रह- समुच्चय आद्य- शक्ति के रूप प्रकट हुआ ।। इस कथानक से स्पष्ट है क स्वरूप एक रहने पर भी उसके अन्तर्गत विभिन्न घटकों का सम्मिलन- समावेश है ।। गायत्री के 24 अक्षरों की विभिन्न शक्ति धाराओं को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि उस महा समुद्र में अनेक महानदियों ने अपना अनुदान समर्पित- विसर्जित किया है ।। फलतः उन सबकी विशेषताएँ भी इस मध्य केन्द्र में विद्यमान है ।। 24 शब्दों को अनेकानेक शक्ति शक्तिओं का एकीकरण कह सकते हैं ।। यह धाराएँ कितने ही स्तर की हैं- कितनी ही दिशाओं से आई हैं ।।
कितनी ही विशेषताओं से युक्त हैं ।। उन वर्ण का उल्लेख अवतारों- देवताओं दिव्य- शक्तियों ऋषियों के रूप में हुआ है ।। शक्तियों में से कुछ भौतिकी हैं, कुछ आत्मिकी, इनके नामकरण उनकी विशेषताओं के अनुरूप हुए हैं ।। शास्त्रों में इन भेद- प्रभेद का सुविस्तृत वर्णन है ।।

चौबीस अवतारों की गणना कई प्रकार से की गई हैं ।। पुराणों में उनके जो नाम गिनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है ।। दस अवतारों के सम्बन्ध में प्रायः जिस प्रकार की सहमान्यता है, वैसी चौबीस अवतारों के संबंध में नहीं है ।। किन्तु गायत्री के अक्षरों के अनुसार उनकी संख्या सभी स्थलों में पर 24 ही है ।। उनमें से अधिक प्रतिपादनों के आधार पर जिन्हें 24 अवतार ठहराया गया है वे यह हैं-

(1) नारायण (विराट), (2) हंस, (3) यज्ञ पुरुष, (4) मत्स्य, (5) कर्म, (6) वाराह, (7) वामन, (8) नृसिंह, (9) परशुराम, (10) नारद, (11) धन्वतरि, (12) सनत्कुमार, (13) दत्तात्रेय, (14) कपिल, (15) ऋषभदेव, (16) हयग्रीव, (17) मोहनी, (18) हरि, (19) प्रभु, (20) राम, (21) कृष्ण, (22) व्यास, (23) बुद्ध और (24) निष्कलंक -प्रज्ञावतार ।।


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