टिप्पणी- आज समाज के सामने अनगिनत परेशानियाँ मुह
फैलाये खड़ी दिखती है, उनसे सभी लोग मुक्त होना चाहते हैं। लम्बे
समय से इनसे बचाने के लिए कोशिश भी की जा रही है, लेकिन बात
बन नही रही। कहावत है ‘‘मर्ज बढ़ता ही गया ज्यो- ज्यो दवा की’’ सामाजिक परेशानियों पर भी यह कहावत फिट बैठती है। विचार करना होगा कि चूक कहाँ हो रही हैं?
युगऋषि ने यह तथ्य सामने रखा कि पत्ते सींचने से पेड़ की सेहत नही संभलती, उपचार को जड़तक पहुँचाना जरुरी है। जब तक मनुष्य के स्वभाव को, उसके ईमान को मनुष्य के अनुरुप नही
बनाया जायेगा तब तक बात बनेगी नहीं। धरती पर स्वर्ग चाहिए तो
मनुष्य को देवता जैसा अपना चिन्तन, व्यवहार बनाना होगा। इसलिए युग
निर्माण आन्दोलन मनुष्य में देवत्व के उदय का संकल्प लेकर ही
आगे बढ़ रहा है।
स्थाई- मनुज देवता बनें- बनें यह धरती स्वर्ग समान।
यही संकल्प हमारा॥
विचार क्रान्ति अभियान, इसी को कहते युग निर्माण।
यही संकल्प हमरा॥
मनुष्य को भगवान ने सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ प्राणी बनाया है। यदि वह अपने अदर स्थित देवत्व को विकसित करने के लिए थोड़ा सा भी प्रमाद करे तो, वह अपने संकीर्ण स्वार्थो से ऊपर उठकर सबके हित में अपना हित देखने लगेगा। फिर किसी प्रकार के द्वेष अहंकार कपट की जरूरत ही नही दिखेगी। सब एक दूसरे को प्यार और सम्मान देते हुए सुख से रहने लगेंगे।
अ.1- द्वेष, दम्भ, छल मिटे यहाँ पर न कोई भ्रष्टाचारी हो।
सभी सुखी हों सबका हित हो, जन- जन पर उपकारी हो॥
मिल जुलकर सब रहें प्रेम से, दें सबको सम्मान॥
सभी मनुष्य एक ही पिता, परमपिता परमात्मा के पुत्र हैं। इसलिए
उनका स्वभाव परस्पर सगे भाई- बहनों के जैसा होना चाहिए। जब मनुष्य
इस परम सत्य को भूलने लगता है रहन- सहन के भेद भाव के आधार
पर परस्पर भेद- भाव करने लगते है। सब भगवान के साथ भावनात्मक
सम्बन्ध जोड़ें और उस आधार पर अपनें सम्बन्ध समझें माने तो सबके बीच भेद रहित प्रेमत्व दर- बदर न कर दें।
अ.2- भेदभाव हो दूर सिक्ख, हिन्दु, मुस्लिम ईसाई का।
परम- पिता के पुत्र सभी का, नाता भाई- भाई का॥
सब ही एक समान सभी, जगदीश्वर की संतान।
युगऋषि कहते है कि मनुष्य इस सत्य को समझ ले कि अब मनुष्य
का जीवन भगवान के साथ साझेदारी के बिना अधूरा है। समर्थ के साथ
साझेदारी हमेशा फायदेमंद होती है। भगवान से समर्थ और कौन है? हम दुनिया के साथ साझेदारी के लिए तो कोशिश करते हैं, ईश्वर के साथ क्यों नही
करते? भगवान दुनियाँ को बेहतर बनाने के लगा रहे ताकि भावना की
शक्ति, विचार की, धन की और साध की शक्ति का एक अंश संसार के
भले के लिए लगायें तो हम भगवान के साझेदार बन जायेंगे। फिर
सदाचार, नैतिकता, उदारता, सादगी जैसे गुण हमारे जीवन मे सहज ही आने
लगेंगे।
अ.3- सदाचार अपनायें सब जन प्रभु के साझेदार बनें।
अनाचार से नाता तोड़ें नैतिक बनें उदार बनें।
सादा जीवन बनें सभी का, फैले फिर सद्ज्ञान॥