सामाजिक कुरीतियों का कहाँ तक वर्णन किया जाए। इनका वर्णन नहीं करता मैं। नैतिकता के मूल्य के बारे में भी आदमी इस तरीके से पिछड़ता चला गया है कि आदमी के जी में न जाने कैसे विश्वास जम गया है कि हम अगर बेईमान होकर जिएँगे तो मालदार हो जाएँगे। कामचोरी करेंगे तो हमारी तरक्की हो जाएगी। यह करेंगे तो हमारा यह हो जाएगा। भ्रष्ट आदमी का आज मन ऐसा ही घटिया हो गया है। मेरे मन में ऐसा विचार आता है कि सारी की सारी विचार करने की शैली को बदल दूँ। एक और जमाना ऐसा आया था कि जिस जमाने में हर आदमी के विचार करने का ढंग बहुत ही घटिया और बहुत ही नीच हो गया था। फिर क्या हुआ? भगवान ने अवतार लिया था और वह परशुराम जी अवतार था परशुरामजी के अवतार ने हाथ में एक कुल्हाड़ा लिया और उस कुल्हाड़े से आदमियों के सिर काट डाले। उनने सारी दुनिया के कई बार सिर काट डाले।