सेवा साधना

सफाई से दो फायदे

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        स्वास्थ्य लोगों के खराब होने लगते है। एक इंग्लिश हिन्दुस्तान में आया था ..अपने अपनी डायरी में लिखा है, उसमें ये लिखा है जब मैं नाक में देखता रहता हूँ बदबू किधर से आती है जंगल में खड़ा होकर देखता हूँ कोई गाँव जाना होता है तो बदबू आती और जिधर से बदबू आती है उसी के सामने चल देता हूँ और गॉंव मिल जाता है। बदबू का केंद्र जो होना ही चाहिए, हमारे गावँ, जहाँ पेशाब और टट्टी के निकासी की कोई गुँजाइश नहीं है। और जहाँ मल और टट्टी, इतने आदमी गाँव में रहते हैं, उसके लिए कोई खर्च करने की, गाँव वालों के लिए खर्च करने की व्यवस्था नहीं है, वहाँ बदबू नहीं आयेगी तो और क्या होगा, बीमारी नहीं होगी तो वहाँ क्या होगा, गंदगी नहीं होगी तो वहाँ क्या होगा, गंदगी न होगी तो और क्या होगा। लोग मलीनता के आदी न होंगे तो क्या होगा। आज हमारा ग्रामीण जीवन ऐसा ही है अस्त व्यस्त है, गंदगी उसके रोम रोम में समा गई है। चूहे भी वहीं रहते हैं, आदमी भी वहीं रहते हैं, बच्चे भी वहीं टट्टी करते रहते हैं। इस गंदगी के विरुद्ध हमें लोहा लेना चाहिए।

        सभ्यता जहाँ से शुरू होती है सफाई से शुरू होती है अगर जो आदमी साफ कपड़ा नहीं पहन सकता मानना चाहिए सभ्य नहीं है, और जिसका मकान साफ नहीं है वह सभ्य नहीं है, उसको भी किताबों को यथा स्थान नहीं रखता, जिस घर में चप्पलें दूसरी चीजें, बर्तन साफ- साफ नहीं रखे जाते वह सभ्य नहीं है, यह मानना चाहिए? सभ्यता का शिक्षण उनको सफाई से शुरू करना चाहिए, और सफाई से शुरू करके गाँव में ऐसे व्यवस्था बनानी चाहिए, ऐसे वालेन्टीयर भर्ती करनी चाहिए, ऐसा आन्दोलन खड़ा करना चाहिए कि व्यक्ति को न केवल अपना घर अपने पड़ोस का घर, अपनी गली कूचे एकाध घंटे समय निकाल कर साफ कर लेनी चाहिए। और जो गोबर, जानवरों का गोबर, ऐसे ही फेंक दिया जाता है, धूप में डाल दिया जाता है, कण्डें बनाकर जला दिये जाते है, राष्ट्र के सोने और हीरे जैसे कीमती चीज को नष्ट कर दिया जाता है, इसके लिए समझाया जाना चाहिए, छोटे- छोटे गढ्ढे बनाये जाये, गढ्ढों में जानवरों का गोबर जमा किया जाए, उसके ऊपर कम्पोष्ट की विधि से बढ़िया खाद बनायी जाय, जो सोने के बराबर है और सोना उगा सकता है, हमारे खेतों में गोबर जहाँ का तहाँ पड़ा रहता है, गली- गली, मुहल्ले- मुहल्ले दरवाजे- दरवाजे पर कीचड़ फैलाता रहता है, वहाँ एक स्थान बनाया जाये, क्या यह सेवा नहीं है हाँ यह सेवा है, और मनुष्य जो अपनी टट्टी जहाँ तहाँ फेंकते रहते हैं, और जहाँ- तहाँ गंदगी करते रहते हैं।

        स्त्रियॉं निकलती हैं और गाँव के दीवारों के सहारे टट्टी करने बैठ जाती हैं और गाँव के आसपास का वातावरण सब गंदा रहता है मैं और क्या कहूँ, इसकी सफाई करने के लिए इस तरह के पखाने ड्रेनेज़ बनाये जा सकते है उसमें गढ्ढा खोदा जा सकता है और उसमें लकड़ी का एक ढाँचा खड़ा किया जा सकता है और लोग उसमें टट्टी जाये मिट्टी भर दें एक खेत में दूसरे हिस्से में गाड़ दिया जाय, लोक बाग टट्टी जाय ढाँचे में शरम भी बनी रहे, स्त्रियॉं और मर्द जहाँ तहाँ नंगे बैठ जाते हैं, आदमी निकलते रहते हैं, गंदगी देखते रहते हैं, नग्नता देखते रहते हैं, किसी का पिछले हिस्सा दिखता है किसी का अगला हिस्सा दिखता रहता है। शरम आती है और बड़ी डूब मरने की बात है, इन सब बातों को आसानी दूर नहीं किया जा सकता क्या, हाँ साहब एक दो घंटे मेहनत करने से सब बात बन जाती है। क्या पेशाब घर घरों में नहीं बन सकती, हर जगह बन सकती है, लोग नहाते है गलियों रात में पेशाब करते हैं, गलियों में बच्चे पेशाब कर देते हैं, रात को उठते हैं, सब गलियों में पेशाब पेशाब की बदबू आती है, किसी का पेशाब किसी को बीमार भी बना सकता है,  छोटे पेशाबघर हर जगह बन सकते हैं, मिट्टी डालकर के, चूना डालकर के, ऐसे सूखने वाले गड्ढे हर जगह बन सकते हैं, इससे सफाई भी रह सकती है, और आदमी को सुविधा भी रह सकती है।
       
टट्टी घर ऐसे भी बन सकते हैं, जिससे कि मनुष्य का मल खेती बाड़ी के काम आ जाय, और खाद का काम आ जाये। इसके साथ- साथ ऐसा भी हो सकता है, कि आदमी के हाथ में एक हाथ में खुरपी लें और एक हाथ में लोटा, खुरपी में कितना वजन होता है। जहाँ जाये गढ्ढा खोद लें गढ्ढे पर टट्टी करें उसके बाद मिट्टी डाले, खाद भी बन जायेगा गन्दगी भी नहीं फैलेगी, अशोभनीयता भी नहीं बनेगी, बदबु भी नहीं फैलेगी। इस तरह के आन्दोलन न जाने कितने आन्दोलन हैं, खड़े किये जा सकते है, इन सब बातों के बारे में शत सूत्री योजना अपनी है, उसमें सौ तरह के सूत्रों के बारे में यह बताया गया है, और यह बताया गया है, शारीरिक सेवा के अनेक काम भरे पड़े हैं, हर आदमी को काम देना, अपंगों को काम देना न जाने कितने काम है, अगर आदमी के मन में सेवा की वृत्ति हो, तो हर जगह शिक्षा से लेकर के गृह उद्योगों तक और सफाई से लेकर लोकशिक्षण तक और संगीत से लेकर न जाने कितने काम ऐसे हैं, जो रचनात्मक कार्यों की श्रेणी में गिने जा सकते है। और सेवा बुद्धि जिनके अन्दर है वो अपनी सेवा भावना को परिष्कृत करने के लिए थोड़ा समय इसमें लगा सकते है, सम्पन्न आदमी थोड़ा पैसा दे सकते है।

        लोगों का थोड़ा- थोड़ा धन और लोगों का थोड़ा- थोड़ा श्रम मिलने लगे तो श्रमदान के आधार पर न जाने क्या से क्या कर सकते हैं, सड़के बना सकते हैं, नहरें बना सकते हैं, ग्राम पाठशालाएँ बना सकते हैं, पंचायतें बना सकते है और न जाने क्या से क्या कार्य करा सकते हैं और जो समय समय हमारे गप्पों मे नष्ट हो जाता है, अगर हम गप्पों वाली और आराम हरामखोरी वाले समय को ठीक तरीके से उपयोग करना सीख पाये और सेवा की वृद्धि कर पाये हमारा समय वो कार्य कर सकता है जो कि दूसरों ने किया और वे समर्थ कहलाये, गवर्नमेंट के कार्य से काम चलने वाला नहीं है। हमें स्वयं अपने कदमों पर खड़ा होना पड़ेगा। और अपनी सेवा वृत्ति के द्वारा राष्ट्र का नया निर्माण करना पड़ेगा।     

        जिन लोगों ने ज्ञान पाया ज्ञान सीखा उसकी परीक्षा यही है, क्या सेवा की बुद्धि की प्रगट उनके अन्दर हुई, और सेवा की वृद्धि का कार्य उन लोगों ने शुरू किया, समझना चाहिए उनका ज्ञान प्राप्त करना ठीक है, ज्ञान रामायण पढ़ना ठीक, प्रवचन करना ठीक और सेवा की बुद्धि नहीं आयी तो समझना चाहिए कि केवल ज्ञान भर सीखा बीज, तो बोया, पर कोई पौधा उत्पन्न न हो सका, हमारे ज्ञान को सार्थकता की ओर, हमारे ज्ञान को कर्म की ओर हमारे ज्ञान को कर्म मे अर्थात सेवा में विकसित होनी चाहिए। 
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