व्यायामशाला, इसमें जरूरी नहीं है कि दण्ड बैठक ही लगाया जाय अनेक तरह के खेलकूद हो सकते हैं। बच्चों के लिए अलग, बच्चियों के लिए अलग, बूढ़ों के लिए अलग, आसन जैसी बहुत सी चीजें हो सकती है। और मिलेट्री ट्रेनिंग जैसी कवायद जैसी बात हो सकती है, लाठी चलाने की बात हो सकती है। हथियार चलाने की बात हो सकती हैं। इससे गुंडागर्दी का दमन होगा। गुण्डे और बदमाश इसीलिए भागते हुए चले जाते है कि आदमी को ये मालूम पड़ता है कि हमारा कोई मुकाबला करने वाले नहीं है।
बहादुर लोग दुनियाँ में नहीं है। सारी की सारी गाँव में कायर और नपुंसक लोग रहते है। और सब लोग बीमार और बेकार लोग रहते है। इसलिए एक गाँव में दो गुण्डे आते हैं और सारे बढ़िया आदमी के नाक में नकेल डाल देते हैं, और सारे के सारे गाँव वालों को उल्लू बना देते है। सारे गाँव पर हावी हो जाते हैं। ये कायर लोग हैं, नपुंसक लोग हैं, कमजोर लोग हैं, और क्या नाम है। क्या क्या लोग है। कोई दम नहीं है बिल्कुल बेदम के आदमी है। अगर आदमी को ये मालूम पड़े कि दमदार आदमी रहते हैं और किसी को छेड़ा गया खबर ली जा सकती है, तो दुनियाँ में जो आधे अपराध और गुंडागर्दी अपने आप समाप्त हो सकती है।
व्यायामशालायें ये काम पूरा कर सकती हैं। गुंडागर्दी पर रोक लगा सकती हैं। आदमी की हिम्मत नष्ट हो गई है और शारीरिक क्षमता जो नष्ट हो गई है, और आदमी कमजोर और काहिल हो गया, इन सारी की सारी बस्तियों को और जो आदमी बीमार होता चला जा रहे है, अपनी काहिली और कमजोरी की वजह से उनको नियंत्रण करने के लिए, दूर करने लिए व्यायामशालाओं का बहुत महत्त्व है। बाकी अगर अखाड़ा ही हो, दण्ड पेलना ही सिखाया जाय। स्वास्थ्य का शिक्षण, स्वास्थ्य की रक्षा, आदमी की हिम्मत और मनोबल की वृद्धि। इसके लिए क्लास भी चलाये जाते हैं और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए हरेक लिए शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए अनेक तरह की शिक्षण भी दिया जा सकता है, अखाड़े भी हों खेल कूद भी हों, खेल कूद की प्रतियोगिता भी हों, दंगल हों इस तरह की साधन सामग्री, संस्थाएँ गाँव- गाँव में स्थापित की जा सकें तो मजा आ जाये। शिक्षा के बारे में मैंने कहा- और व्यायामों के बारे में मैंने कहा-