एक और भी बात है जो सुनी जाती है वो अन्न की समस्या और खाद्य पदार्थों की समस्या है और भोजन की समस्या है। अपने देश में से पेड़- पौधे और हरियाली भी दिनों दिन कम होती चली जा रही है। उसका परिणाम यह हो रहा है कि वर्षा कम हो रही है। पेड़ कटते जायेंगे, वर्षा घटती जायेगी। यह मोटा वैज्ञानिक सिद्धान्त है। आप पेड़ों को काट डालिए, जैसलमेर जैसा प्रांत यहाँ के पेड़ पौधे नहीं होते है। पेड़ों में वो आकर्षण है, जो वर्षा के बादलों को खींच कर ले आते हैं। और पेड़ों में वो आकर्षण है जो आक्सीजन पैदा करते हैं, और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्य संवर्धन करते हैं। पेड़ भी मनुष्य के सहयोगी हैं। पेड़ों को लगाया जा सकता है। एक बिहार जिला में हजारी बाग जिला है, वहाँ का एक किसान, किसी ने यह कह दिया बाग लगा दो उसकी संतान हो जायेगी बस उसने सौ पेड़ आम के लगाये, आम के पौधे बढ़ते गये, जब उसके नीचे छाया आने लगी और बच्चे फल खाने लगे और सारे गाँव को आम मिलने लगे तो बहुत खुशी हुई। उनने कहा, बेटा हुआ तो क्या, न हुआ तो क्या, आम का लगाना, आम के बगीचे का लगाना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। बस उसके दिमाग में ऐसी अपेक्षा और तरंग उत्पन्न हुई और सारे जिले के लिए खड़ा हो गया और गाँव- गाँव जाके बिना पढ़ा किसान और गरीब किसान और ये कहने लगा मैंने आम का बगीचा लगाया मुझे बहुत खुशी हुई, मेरे गाँव के सब बच्चों को आनंद आया वहाँ खेलने को जगह मिल जाती है और उसकी ठण्डक में सारे गाँव के लोग जा बैठते हैं। आपको भी आम का बगीचा लगाना चाहिए।
लोगों ने उत्साह दिखाया तो स्वयं लगाने लगा स्वयं पानी लगाने लगा गाँव के लोग फिर उत्साहित हुए, जब लोग सम्हालने लगे तो वहाँ से दूसरे गाँव में लगाने लगा। हजार बाग, हजार आम के बाग लगाये, उसका नाम हजारी बाग हो गया, हजारी बाग जिला इस बात का सबूत है, इस बात की परम्परा लिये बैठा है, किसी जमाने में एक ही किसान ने अपनी जिन्दगी में सहयोग दे कर के लोगों के साथ मिलजुल करके लोगों को आन्दोलन के रूप में प्रोत्साहित करके बिहार के उस जिले में हजारों आम के बाग लगवायें थे और सारे के सारे जिले को हरा−भरा कर दिया था और फल−फूलों से आदमी के मन में सेवा की बुद्धि, सेवा की वृत्ति आये तो बिना पढ़ा किसान ये काम कर सकता है कि जहाँ जंगल पड़े हुए है जहाँ खाली जगह पड़ी हुई है, जहाँ वीरान जगह पड़ी हुई है, वहाँ फल लगवायें और पेड़ों की गुंजाइश न हो तो हम अपने मकान में, घरों में अपने आँगन में शाक वाटिका लगा सकते हैं, और अपनी खाद्य समस्या के हल में योगदान दे सकते हैं, मिट्टी की नांदे, टूटी हुई घड़े, गमले, लकड़ी की पेटियाँ, कही भी रखी जा सकती है पक्के मकानों में भी, जहाँ खेती बाड़ी की गुंजाइश भी नहीं।
लखनऊ में एक हमारे मित्र हैं, उन्होंने अपने पक्के महान की छत के ऊपर २० लकड़ी की पेटियाँ रख ली, और उसमें मिट्टी और गोबर मिलाकर भर दिया, उसमें साग भाजी बोई, ६ महीना के लिए पूरी शाक भाजी उसी से पैदा करते गये, हमारे कुटुम्ब में तीन चार रुपये का रोज साग आता था, हमने तीन चार रुपये की रोज बचत कर लेते है। तीन चार रुपये की बचत अर्थात १०० रुपये महीना और १०० रुपये महीने उनको सात आठ महीने साग मिलती रही तो वो सात आठ सौ रुपये कमा लिया। और साथ ही अन्न की कमी थी उसकी बचत कर ली और पौष्टिक आहार प्राप्त कर लिया। ये भी एक सेवा है, अपने गाँव में बच्चों की तरीके से, पशु−पक्षियों की तरीके से फल और फूल लगें, और साग लगें तो क्या बुरा है, जिन- जिन के घरों के आसपास थोड़ी जमीन खाली पड़ी रहती है, और अक्सर थोड़ी बहुत जमीन खाली पड़ी रहती है, उनमें साग लगा सकते है, लौकी लगा सकते, प्याज लगा सकते है, गोभी लगा सकते है। न जाने क्या लगा सकते है अपने घर की साग भाजी की समस्या हल कर सकते है और न केवल बचत कर सकते है। बल्कि अपने शरीर के अच्छा खाद्य और आवश्यक खाद्य भी मुहैया कर सकते है।
साग उगाने वाली बात और फूल लगाने वाली बात हँसते हुए, मुस्कुराते हुए प्रकृति के बालक, जो हमको उल्लास दे सकते हैं, हमको खुशबू दे सकते हैं, हमको बल दे सकते है ये फूलों की भी आवश्यकता है, फूल पैदा करने के लिए हम अपने आँगन में गमले लगायें, फूलों के बीज इकट्ठा करें गाँव में जाये, लोगों से कहें, फूलों के पैकेट हम मँगाये, और फूल बोने की व्यवस्था हम बनाये और शाक−भाजी की बीज इकट्ठे कर लें, बिना की कीमत से दें, अथवा कीमत से दें। लोगों से कहें, हम आपकी मदद करना चाहते हैं, फूल लगाना चाहते हैं, दो आने का पैकेट है, एक फूल का पौधा लगाइये न। इस तरीके से साल के छोटे- छोटे से काम हैं, सेवा, हम इस तरह के काम करना शुरू करें, तो हमारे देश में हजारी बाग की तरह से कितनी छाया पैदा हो सकती है, लकड़ी पैदा हो सकती है, और वृक्षों में अपनी भाई और बहिन फूल पौधों के तरीके से उनको बढ़ाने के लिए बहुत काम किया जा सकता है। जैसा काम बताया है, काम आदमी कर सकता है अगले समय की एक महती आवश्यकता।