यह ज्ञान- पक्ष हुआ। विज्ञान पक्ष। विज्ञान- पक्ष भी है। विज्ञान- पक्ष क्या है? हमारे पास एक ऐसी मशीन है और एक ऐसी लेबोरेट्री है, एक ऐसी प्रयोगशाला है और एक ऐसा कम्प्यूटर है, जिसके आधार पर हम आवश्यक चीजों की पैदावार कर सकते हैं। ये कौन- सी प्रयोगशाला है? इसका नाम है हमारा शरीर। इसके तीन हिस्से हैं। त्रिपदा गायत्री तीन चरणों वाली गायत्री का मतलब यह है कि हमारे पास तीन शरीर हैं और तीन फैक्ट्रियाँ हैं। जिस तरह एक के बाद एक लॉकर होता है। बाहर एक कमरा होता है, कमरे में तिजोरी होती है, तिजोरी में लॉकर होता है, इस तरह से तीन हमारे शरीर है। एक तो स्थूल शरीर, एक सूक्ष्म शरीर और एक कारण शरीर। इन तीनों शरीरों की अगर उपासना की जा सके, इसके भीतर रहस्यमय दुनिया भरी पड़ी है, उसे जाग्रत किया जा सके तो जाग्रत अत्तीन्द्रिय क्षमताएँ सामान्य को असामान्य बना देती हैं। ये मनुष्य को तपस्वी बना देती हैं, सामर्थ्यवान बना देती हैं, शक्तिवान बना देती हैं। जिस तरीके से भौतिक शक्तियों का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं, उसी तरीके से आध्यात्मिक शक्तियाँ भी हैं, जो हमारे लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
हमारा शारीरिक- बल मशीन का बल नहीं है, हमारे शरीर का बल है और हमारा साहस मशीन का बल नहीं है, तलवार का बल नहीं है। तलवार अपने आप में काम की हो सकती है, पर हिम्मत हमारी अपनी ताकत है। मशीनों को चलाना, मेहनत को कम करना और दूसरे काम कर लेना मशीनों के द्वारा हो सकता है। आटोमैटिक मशीनें हम चला सकते हैं, लेकिन जो हमारे दिमाग की ताकत है, उसकी कोई आटोमैटिक मशीन बराबरी नहीं कर सकती। कम्प्यूटर में अपनी ताकत है और अपनी क्षमता है, लेकिन हमारे दिमाग की जो पहुँच और परख है, वह किसी कम्प्यूटर की नहीं हो सकती। कम्प्यूटर हमारा गुलाम है। वैज्ञानिकों ने इस तरह की मशीनें बना दी हैं और मनुष्य को इस तरह से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जब काम को मशीन कर लेती हैं तो वह उसे क्यों करें? लेकिन वह भूल जाता है कि अनेक तरह की परिस्थितियों के हिसाब के साथ अनेक तरह की नई धाराओं पर मशीन या कम्प्यूटर नहीं विचार कर सकता। ये हमारी अपनी विशेषता है।
मनुष्य के अन्दर कितनी सामर्थ्य है, आप तो समझते भी नहीं हैं। इतनी सामर्थ्य है आदमी के भीतर जो बीज के रूप में है और सोई पड़ी हुई है। उसको जगाने के लिए जो तपस्याएँ की जाती हैं, साधनाएँ की जाती हैं, योगाभ्यास किए जाते हैं, वे कहाँ से आते हैं? वे सारे के सारे गायत्री मंत्र में सन्निहित हैं। चौबीस अक्षर के भीतर चौबीस योग हैं और प्रत्येक आठ- आठ अक्षर गायत्री मंत्र में इस प्रकार से हैं, जो तीनों शरीरों की साधना के लिए अष्टांगयोग हैं। राजयोग किसका है? ये मानसिक हैं। शरीर के लिए हठयोग है और भी बहुत सारे योग हैं, जिसकी व्याख्या में मैं आपको नहीं ले जाना चाहता। मैं तो केवल आपको इतना बताना चाहता हूँ कि हमारा ज्ञान पक्ष और विज्ञान पक्ष दोनों ही पक्ष उससे जुड़े हुए हैं, जिसे हम गायत्री मंत्र कहते हैं। गायत्री मंत्र ही है, जिसकी उपासना, जिसकी विधि, जिसका प्रयोग और जिसका तत्त्वज्ञान ये सारी चीजें सिखाने के लिए इस मिशन का निर्माण हुआ है और जिसने कि हमको और आपको एक धागे में बाँध दिया है। हमारा आपसे स्नेह इसी एक धागे से बँधा हुआ है। हम बँधे हुए हैं। ये क्या चीज है? ये भारतीय संस्कृति का मूल है। कैसे? बताइए जरा।